चिंतन के चौपाल-आचार्य भगवत दुबे
मुक्तक
केवल तन रहता है घर में
सदा रहे मन किन्तु सफर में
बाहर नहीं दिखाई देता
जो बैठा है अभ्यंतर में।
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हर साजो-सामान तुम्हारा,
यश वैभव सम्मान तुम्हारा,
माँ जैसे अनमोल रत्न बिन,
नाहक है अभिमान तुम्हारा।
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जीवन के संघर्ष पिता थे,
सारे उत्सव हर्ष पिता थे,
संस्कृतियों के संगम थे वे,
पूरा भारतवर्ष पिता थे।
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बच्चों की अठखेली अम्मा,
दुःख की संग सहेली अम्मा,
प्यासों को शीतल जल जैसी,
भूखों को गुड़-ढेली अम्मा।
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घर की चमक-दमक बहुएँ हैं,
उत्सव की रौनक बहुएँ हैं,
संस्कृति के सुरभित फूलों की
देती हमें महक बहुएँ हैं।
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सृष्टि के सद्ग्रन्थ की पावन रहल हैं बेटियाँ,
पारिवारिक पुण्य तरु का श्रेष्ठ फल हैं बेटियाँ,
प्रीति, ममता और करुणा की त्रिवेणी हैं यही
दो कुलों के संगमों का तीर्थ जल हैं बेटियाँ।
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माँ, बहिन, बेटी, बहू, पत्नी कहातीं नारियाँ
फर्ज ये हर रूप में अपना निभाती नारियाँ,
शक्ति हैं ये आस्था अपनत्व के अहसास की
इस धरा पर स्वर्ग का वैभव रचाती नारियाँ।
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बाहर नहीं बताना घर की बुराईयों को,
लज्जित कभी न करना अपने ही भाईयों को,
बेटी-बहू के सँग-सँग बहिनों को मान देना
यह मातृशक्ति देती ताकत कलाईयों को।
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महापुराण कहानी दादी,
हैं ममतालु सुहानी दादी,
इनकी सेवा मंगलकारी,
शुभ चिन्तक वरदानी दादी।
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सबल भुजा का बल भाई है,
धड़कन की हलचल भाई है,
देता है खुशियों की फसलें
धरा, गगन, बादल भाई है।
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हरा-भरा परिवार जहाँ है,
ममता प्यार दुलार जहाँ है,
सुख का सिन्धु वहीं लहराता
बच्चों का संसार जहाँ है।
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बेटी है वरदान सरीखी,
संस्कृति की पहचान सरीखी,
माता-बहनें पूज्य रही हैं
भारत में भगवान् सरीखी।
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कहीं से लौटकर हारे-थके जब अपने घर आये।
तो देखा माँ के चेहरे पर समंदर की लहर आये।
वहाँ आशीष की हरदम घटाएँ छायी रहती हैं,
मुझे माता के चरणों में सभी तीरथ नजर आये।
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ठान ले तू अगर उड़ानों की,
रूह काँपेगी आसमानों की,
जलजलों से नहीं डरा करते,
नींव पक्की है जिन मकानों की।
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माँ के बिना दुलार कहाँ है,
पत्नी के बिन प्यार कहाँ है,
बच्चों की किलकारी के बिन
सपनों का संसार कहाँ है।
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बेटी को उसका अधिकार समान मिले,
पूरा करने उसको भी अरमान मिले,
अगर सुशिक्षित और स्वावलंबी हो जाये
तो पीहर में क्यों उसको अपमान मिले।
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मुरझाये देखती कभी चेहरे जो लाल के,
रखती कलेजा सामने थी माँ निकाल के,
बीमार वृद्ध माँ को उसके समर्थ बेटे
असहाय छोड़ देते हैं घर से निकाल के।
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कोई तीरथ न माँ के चरण से बड़ा,
माँ का आँचल है पूरे गगन से बड़ा,
माँ की सेवा को सौभाग्य ही मानना
कोई वैभव न श्आशीषधनश् से बड़ा।
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सम्बन्धों के तोड़े जिनने धागे होंगे,
तृष्णा में घर-द्वार छोड़कर भागे होंगे,
छाया कहीं न पायेंगे वे ममता वाली
पछताते वे जाकर वहाँ अभागे होंगे।
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खुद रही भींगी हमें सूखा बिछौना दे दिया
भूख सहकर भी हमें धन दृव्य सोना दे दिया
कर दिया सब कुछ निछावर माँ ने बेटों के लिए
वृद्ध होने पर उसे, बेटों ने कोना दे दिया।
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ठेका लिया है जिनने ईमानदारियों का,
ठगना है पेशा उनकी दूकानदारियों का,
हर वृक्ष में समाया रहता है डर हमेशा
पर्यावरण सुधारक नेता की आरियों का
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फल भुगतना ही पड़ा इन्सां को अपने पाप का,
वक्त फिर अवसर नहीं देता है पश्चाताप का,
जिनने लूटी है किसी बेटी-बहू की आबरू
उनकी संतानें झुका देती हैं सिर माँ-बाप का।
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मेरे चेहरे का पानी थे,
वे घर के छप्पर-छानी थे,
झुके, न झुकने दिया कभी भी
मेरे पिता स्वाभिमानी थे।
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आशिकों पर अगर सितम होंगे,
तेरी महफिल में फिर न हम होंगे,
चाटुकारों की भीड़ तो होगी,
तुम पे मिटने के पर न दम होंगे।
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दूल्हों की कीमतें हैं ऊँची बजार में,
बेकार मूढ़ अनपढ़ भी हैं कतार में,
ले जाते भ्रष्ट धनपति इनको खरीदकर
निर्धन खरीदें कैसे छोटी पगार में।
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रहते हो चटपटी सी खबरों में आजकल,
लोगों की, चढ़ रहे हो नजरों में आजकल,
झूठे प्रशंसकों से है बचने की जरूरत
दुश्मन भी सम्मिलित हैं लबरों में आजकल।
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टिकट मिली रिश्तेदारों को,
मिला लिया है बटमारों को,
अपराधी सत्ता में पहुंचे
छूट मिली भ्रष्टाचारों को।
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मुश्किल चाहे ज्यादा हो,
उद्यम कभी न आधा हो,
लक्ष्य प्राप्त करना हो तो
दृढ़ संकल्प, इरादा हो।
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छीनकर ज्योति, नकली नयन दे गये,
देखने कांकरीटों के वन ये गये,
हमको आजाद पिंजड़े से कर तो दिया
काटकर पंख, पूरा गगन दे गये।
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दीप न आँधी से डरता है,
अंतिम क्षण तक वह लड़ता है,
हार मान लेना दुश्मन से,
बिना लड़े तो कायरता है।
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नभ पर दहका मार्तण्ड है,
छाँव बिना गर्मी प्रचण्ड है,
वन उजाड़ने का धरती ने,
लगता जैसे दिया दण्ड है।
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मेरी शिराओं में इक अहसास की नदी है,
आँखों में तैरती इक खूँखार त्रासदी है,
चंदन ने गंध दी तो लिपटे हैं नाग आकर
नेकी के बदले जग में मिलती रही बदी है।
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पारदर्शी है अदावट आपकी,
छिप नहीं पाती बनावट आपकी,
पत्र कोरा आपने भेजा मगर
दिल ने पढ़ ली है लिखावट आपकी।
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दर पर पड़ा हूँ तेरे दर्शन की भीख पाने,
रहमो करम पे तेरे पलते रहे जमाने,
खाली है मेरा दामन तुमसे छुपा नहीं है,
मैं रूठकर जो लौटा, आओगे फिर मनाने।
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जहाँ उदासी वहीं ताज़गी,
जहाँ तिमिर है वहीं रोशनी,
जहाँ खड़ी हो मृत्यु सामने
मिल जाती है, वहीं जिन्दगी।
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विकलांग में भले ही थोड़ी बहुत कमी है,
प्रतिभा की किन्तु उसमें कोई कमी नहीं है,
अपमान कर, हिकारत से देखते सभी पर
सम्मान करने वाला मिलता कहीं नहीं है।
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बेटी के हाथ करते माँ-बाप जब भी पीले,
फटने को होती छाती बरबस हों नेत्र गीले,
रहता है मन सशंकित ससुराल के दमन से,
धोखे से दर्दनाशक बेटी जहर न पी ले।
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युवा पीढ़ी भटक कर जब गलत राहों पे जाती है,
तो अपने खानदानी संस्कारों को लजाती है,
बढ़ावा लाड़ में जो अत्यधिक बच्चों को देते हैं,
उन्हें ही एक दिन यह भूल होती आत्मघाती है।
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चुनावों की बिसातें जब बिछाती है,
घृणा नफरत के मुहरों को सजाती है,
हमेशा राष्ट्रघाती दाँव चलती है,
सियासत मजहबी झगड़े कराती है।
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यह कैसी सच्ची यारी है,
शंका की पहरेदारी है,
चला प्यार की तलवारों पर,
किन्तु रही वो दो धारी है।
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कटे शीश वाले कहार थे,
डोली पर लाये बहार थे,
आजादी तो लाये लेकिन
उनने भोगे तिरस्कार थे।
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आजादी लाने की ठानी,
सही यातना काला पानी,
उन दीवानों की अब नेता
भूल गये सारी कुर्बानी।
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फिर चुनाव की तैयारी है,
साँप-नेवले में यारी है,
हर गठबंधन फिर वोटर से
करने वाला गद्दारी है।
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आसमान पर पारा होगा,
सत्ता का बँटवारा होगा,
नेता चाटेंगे मलाई,
पर शोषण सिर्फ हमारा होगा।
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तेरे बदले जहान क्या लूँगा,
छद्म का आसमान क्या लूँगा,
शन बँधती जहाँ हो पंखों में,
उस जगह से उड़ान क्या लूँगा।
सजे-धजे बाजार मिले,
जिस्मों के व्यापार मिले,
जो बिकने से बच निकले,
वे सच्चे किरदार मिले।
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जहाँ रोज दल-बदल हुआ है,
खड़ा झूठ का महल हुआ है,
सिध्दान्तों पर चलने वाला
सत्ता से बेदखल हुआ है।
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अधिकृत परिचय पत्र दिखाया,
पर मतदान नहीं कर पाया,
मची हुई है भर्राशाही
मुर्दे से मतदान कराया।
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आजकल नेतागिरी चमचों से चलती है,
योग्यता लेकिन यहाँ पर हाथ मलती है,
बेईमानी, छल-कपट औ’ बाहुबल से ही
ये सियासत फूलती औ’ खूब फलती है।
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संकल्पित हो, जो बढ़ता है
उच्च षिखर पर वह चढ़ता है
विपदाओं में पढ़ने वाला
यष के कीर्तिमान गढ़ता है
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जब बूढ़ा बीमार हो गया,
दरकिनार बेजार हो गया,
जो धकियाता था वह बेटा
दौलत का, हकदार हो गया।
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मंदिर मस्जिद डरे हुए हैं,
दोनों आँसू भरे हुए हैं,
इनके तहखानों के अंदर
सब विस्फोटक धरे हुए हैं।
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बैर, नफरत, घृणा अगर निकले,
आदमी में भरा जहर निकले,
फिर से सद्भावना फले-फूले
प्रीति की यदि नई नहर निकले।
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जिनको पहचान है फकीरों की,
मनसबें छोड़ते अमीरों की,
बात कहते खरी निडरता से
सुहबतें जो करें कबीरों की
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झूठा मातम मना रहे थे,
दीप खुशी के जला रहे थे,
हाथ कत्ल में रंगे हुए पर
रो-रो रपटें लिखा रहे थे।
जब भी कोर्ट कचहरी होगी,
कोई साजिश गहरी होगी,
साथी अंधा हो जाएगा
दंड संहिता बहरी होगी।
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जब मजहबी विवाद हुए हैं,
कितने घर बर्बाद हुए हैं,
बेच दिया जिनने जमीर वो
आतंकी जल्लाद हुए हैं।
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गुमसुम रहने से क्या होगा,
कहने से मन हल्का होगा,
स्वच्छ रहे, जल, यदि उलीच दो
कूप अन्यथा गँदला होगा।
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आँख की भी जुबान होती है,
बात इनसे बयान होती है,
तोड़ भी दीजिए ये खामोशी,
बेवजह दास्तान होती है।
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मुझसे दूरी रखी बहारों ने
कितना विचलित किया नजारों ने,
मुझको आश्रय दिया अँधेरों ने
मुँह जब फेरा है चाँद-तारों ने।
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उसकी आँखों में हिरणी की चितवन मिली मुझे,
उसके अधरों पर बिजली की थिरकन मिली मुझे,
उसकी प्यार भरी नजरों ने ऐसा असर किया
अपने दिल के अन्दर उसकी धड़कन मिली मुझे।
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वृध्द माँ-बाप को छाया समझो,
मशविरों में न पराया समझो,
माँ के आँचल में स्वर्ग रहता है
पूजनीया है, न ‘आया’ समझो।
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हर घर का श्रृंगार वृद्ध हैं,
रखते घर गुलजार वृद्ध हैं,
संस्कृति की खुशबू फैलाते,
मानों मलय-बयार वृद्ध हैं।
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जिन्दा है पर जान नहीं है,
बचा अगर ईमान नहीं है,
चर्चित ऐसा हुआ कि, अपने
घर में ही सम्मान नहीं है।
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इश्तहार थे दीवालों पर,
न्याय मिलेगा चौपालों पर,
होने लगे फैसले सारे
धूर्त दलालों की चालों पर।
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मिलते नहीं हैं नेता अपने निवास में,
बाहर कहीं बंधे हैं कुड़ियों के पाश में,
फुर्सत कहाँ है उनको अय्याशियों से अब,
रहते है भेड़िये अब खद्दर लिबास में।
0
राजनीति पूरी जवान है,
नेताओं पर महरबान है,
वह जिस पर प्रसन्न हो जाती
उसे बना देती महान है।
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अपराधी कुख्यात अगर हो,
राजनीति की सहज डगर हो,
बेलट पत्र शरण में आते,
बन्दूकों में अगर असर हो।
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गलत धन जो कमाते हैं
सितारे रूठ जाते हैं,
उन्हें भी घेरते दुर्दिन
जो दुखियों को सताते हैं।
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सिर्फ इतनी सी तो महरबानी करो,
मेरे दिल में जरा मेहमानी करो,
है उपेक्षित ये वीरान सी जिन्दगी
अपनी खुशबू से अब जाफरानी करो।
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नयन में शर्म का पानी न होगा,
तुम्हारा जिस्म लासानी न होगा,
रहें यदि पास में जेवर हया के
कोई इस हुस्न का सानी न होगा।
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चिन्ताओं से घिरा मैं, उनको फिकर नहीं,
बे-मेल संग हो तो होती गुजर नहीं,
फिर भी निभाना पड़ती इन्सान को यहाँ,
साथी बिना अकेले कटता सफर नहीं।
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हर कहानी के कथानक भिन्न हैं,
मंजिलें पाने के मानक भिन्न हैं,
कितने राही मुश्किलें को देखकर
मार्ग चुन लेते अचानक भिन्न हैं।
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चाहतें दिल में जगा देता है प्यार,
दूरियाँ सारी मिटा देता है प्यार,
जाति, भाषा, मजहबों की खाईयाँ
पाटकर राहें बना देता है प्यार।
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नदी सिन्धु से जब मिल जाती,
मिलकर स्वयं सिन्धु हो जाती,
ईश्वर है असीम सागर सा
जहाँ प्राण की बिन्दु समाती।
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कभी अंतस से जब आवाज आती है,
सजन की कामना जब दीप्ति पाती है,
कलम, कागज पे अपने आप चलती है
कि ज्यों कविता विवश लिखवाई जाती है।
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किसी की आँख में दुख झाँककर देखो,
किसी बच्चे के आँसू पोंछकर देखो,
खुशी का ग्राफ दिन-दूना अधिक होगा
दिलों की दूरियाँ भी नापकर देखो।
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जिन पर नशा चढ़ा हो इन्सान के लहू का,
उन पर असर न होता, मिन्नत का, आरजू का,
वीरान बस्तियों की चीखों पे नाचते जो
उनको न स्वर सुहाता है कर्णप्रिय ‘कुहू’ का।
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खोलकर जुल्फ को सँवारा है,
आज क्या खूब ये नजारा है,
चाँद को, ज्यों घटा हटाकर के,
आज आकाश ने उतारा है।
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अब के मधुमास में उदासी है,
कूक कोयल की भी रुआंसी है,
गिद्ध मंडरा रहे कटे वन में
जैसे दावत मिली सियासी है।
0
नापकर आसमान आते हैं,
चन्द दाने कमा के लाते हैं,
एक जैसे श्रमिक, परिन्दे ये
रोज लाते हैं, रोज खाते हैं।
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सांस्कृतिक चैतन्य का संधान हो,
श्रेष्ठ मूल्यों का उचित सम्मान हो,
वैज्ञानिक सत्य भी पहचानिये
अंधविश्वासी न अपना ज्ञान हो।
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जब अतिचार भयंकर होगा,
वख्त विषैला विषधर होगा,
विपदा का विष पीने वाला
निश्चय ही शिव शंकर होगा।
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दाल-रोटी वस्त्र ना घर दे सके,
यक्ष प्रश्नों के न उत्तर दे सके,
फिर सुनहरे स्वप्न लेकर आ गये
जिन्दगी भी जो न बेहतर दे सके।
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दर्द पराया अपना मानें,
अपनी खुशी बाँटना जानें,
सबकी चिन्ता इन्हें सताये
बूढ़े हृदय बाँचना जानें।
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घर में रखकर मन आता है,
जब भी वह बाहर जाता है,
घिरा समस्याओं से रहता
चिन्ता से गहरा नाता है।
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जीवन है अखबार सरीखा,
घटिया कारोबार सरीखा,
तन बेचे बिन मिले न रोटी
हर रिश्ता व्यापार सरीखा।
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बेच दी आबरू कामयाबी मिली,
उसको दौलत कमाने की चाबी मिली,
पोत ली मुँह में कालिख बुराई की
तब चन्द दिन की उसे माहताबी मिली।
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अपना घाव कुरेदा कर,
बदले की सुई छेदा कर,
हार, जीत में बदलेगी
लक्ष्य स्वप्न में भेदा कर।
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कितनी सृष्टि जलाई होगी,
कालिख भी पुतवाई होगी,
प्रायश्चित में जले कोयला
तब, की प्राप्त ललाई होगी।
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0
वृक्ष काटे हैं धन कमाने को,
आज व्याकुल हैं छाँव पाने को,
वन न होंगे न मेघ बरसेंगे
लोग तरसेंगे दाने-दाने को।
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हो गये कानून रक्षक व्याध से,
न्याय की आशा करो एकाध से,
खून भी जब चूस लेंगे आपका
तब बरी हो पाओगे अपराध से।
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लगा दिल को कि कुछ आवाज आयी,
मुझे सहसा तुम्हारी याद आयी,
न जाने आज क्यों तड़पन अधिक है
तुम्हें भी क्या हमारी याद आयी।
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गलत स्रोतों, बुरे धंधों से जब धन खूब आता है,
बहुत सी व्याधि, विपदाओं को अपने साथ लाता है,
विलासी वस्तुएँ घर में हमारे भर तो देता है
मगर सुख-शांति की अलमारियाँ खाली कराता है।
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देकर दान, बखान न करना,
दौलत का अभिमान न करना,
इससे ओछापन दिखता है,
खुद अपना गुणगान न करना।
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तौहीनी करना फकीर की,
फितरत होती है अमीर की,
आह हमें छलनी कर सकती,
इतनी ताकत नहीं तीर की।
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कुटिल मजहबी बीमारी को,
हवा न देना चिन्गारी को,
अफवाहें पल में कर देती
राख, जलाकर फुलवारी को।
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जो मेरे सरकार से जाकर मिले,
वे महकते हैं हवा के काफिले,
जिसकी खुशबू से फिजाँ लबरेज है
धन्य, जिसको देखने वह दर मिले।
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लोग चाहें बुराई करें,
भूलकर न बड़ाई करें,
आत्मसुख छीन सकते नहीं
आप तो बस भलाई करें।
0
घृणा, द्वेष मिटवाता चल,
मेल-मिलाप कराता चल,
नफरत की दीवारों से
मत घबरा, टकराता चल।
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सूरज को घेरें अँधियारे,
तिमिर भले यह पाँव पसारे
नया सबेरा फिर लाएँगे
उसके साहस के उजयारे।
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खोद रखी नफरत की खाई,
मजहब की दीवार उठाई,
कैसे गले मिलेंगे बोलो
अपनों से अपने ही भाई।
0
0
कट गये जब खेत से खलिहान से,
जी न शहरों में सके सम्मान से,
है तराजू स्वार्थ की जिनके यहाँ
‘प्रेम’ मिलता तौलकर अपमान से।
0
लुत्फ जीवन का उठाना चाहिए,
जिन्दगी हँसकर बिताना चाहिए,
जीत का तो जश्न करते हैं सभी
हार में भी मुस्कुराना चाहिए।
0
उम्र को यूँ ही न ढलने दीजिए,
भावनाओं को मचलने दीजिए,
स्वप्न ये साकार हों अथवा न हों
चाहतों को फिर भी पलने दीजिए।
0
मातृभूमि पर किया निछावर जिनने यौवन बाँका,
मानव की क्या बात, त्याग देवों ने जिनका आँका,
अपने साथ अमर कर लेते हैं कुल, गोत्र स्वतः के
भाल समुन्नत कर देते हैं वीर प्रसविनी माँ का।
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खुद सहते हैं धूप, छाँव-फल देते राही को,
उद्यत रहते लोग इन्हीं की सदा तबाही को,
वृक्षों के उपकार भूलता जाता है मानव
देगी दण्ड कठोर प्रकृति इस लापरवाही को।
0
गीता या कि कुरानों में,
मस्जिद या बुतखानों में,
बँट जाते हिन्दू-मुस्लिम
अलग न पर, मयखानों में।
0
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प्यार में जीत, मात मत करना,
दंभ की कोई बात मत करना,
प्यार सबका समान होता है
प्यार में जात-पाँत मत करना।
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दीमकें लग रहीं पुराणों में,
मीर बिकते कबाड़खानों में,
आज जाती नहीं नयी पीढ़ी
कीर्तन-आरती-अजानों में।
0
दौलत का अभिमान शहर है,
संस्कृति का अपमान शहर है,
यहाँ खेत-खलिहान नहीं हैं
राशन की दूकान शहर है।
0
अखबारी सम्मान जहाँ है,
आडम्बर अभिमान जहाँ है,
गाँव भले हैं, उन शहरों से
जीवन नर्क समान जहाँ है।
0
यूँ कठोर संत्रास मिला है,
खुशियों को वनवास मिला है,
कुंठित हो, मर रही योग्यता
जेबों में सल्फास मिला है।
0
पानी बिकता बाजारों में,
प्याऊ खुले हैं, अखबारों में
हवा सूँघने के दिन आये
चर्चा भूखे लाचारों में।
0
कहने को बस, स्वाभिमान है,
अब मनुष्य, मुरदा समान है,
रिश्तों के अहसास दफ्न कर
बना पत्थरों का मकान है।
0
है विदेशी सील, देसी माल में,
भर लिया भूसा स्वयं की खाल में,
संस्कारों को, निगलती सभ्यता
आबरू बिकने खड़ी चौपाल में।
0
उसके यश का उजियारा है,
दौलत का जलवा सारा है,
उसको कुर्सी मिली न्याय की
जो किरणों का हत्यारा है।
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मेरे अजीज मुझ पर तोहमत लगा गये,
जो राजदाँ थे मेरे देकर दगा गये,
जख्मों को सुलाया था लोरी सुना-सुना
मरहम लगाने वाले फिर से जगा गये।
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जो अगुआ थे अलगावों के,
ठाठ बड़े उन नेताओं के,
उन्हें फूल-फल रही फूट है
जो कातिल हैं सद्भावों के।
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चाल बदली है ताजदारों की,
याद आयी है खाकसारों की,
आ गया है चुनाव का मौसम
लूटना है फसल बहारों की।
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मैं सदा इम्तिहान से गुजरा,
आग वाली उड़ान से गुजरा,
जलजला, छोड़कर महल सारे
मेरे जर्जर मकान से गुजरा।
0
विपदा से मेरी यारी है,
ठोकर दौलत को मारी है,
अपमानों के सुख, ठुकराये
रखी सुरक्षित खुद्दारी है।
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देखा न ख्वाब कोई, हर गम रहे जगाते,
विपदा की आग, मेरे आँसू रहे बुझाते,
सारी मुसीबतें तो मेहमान बनके आयीं
स्वागत में अपनी पलकें, कैसे न हम बिछाते।
0
जिसके लिये गाँव से आया,
शहरों में वह चैन न पाया,
सारे सुख-वैभव हैं लेकिन
मिली न अपनेपन की छाया।
0
किसने हरियालियों को खाया है,
बाग लोहे का ऊग आया है,
आज वीरान हो गये जंगल
कोई बिल्डर जरूर आया है।
0
बात केवल न मुँहजुबानी कर,
तोड़ पत्थर को पानी-पानी कर,
जिसकी खुशबू से सारा जग महके
अपनी वाणी को रातरानी कर।
0
तेरे दीवानों में तो शामिल हुआ,
प्यार मेरा किन्तु नाकाबिल हुआ,
हम वफा की राह पर जब भी बढ़े
सिर्फ नफरत का जहर हासिल हुआ।
0
जब अनुभव की आग तपाती है,
पीड़ा से सहकार कराती है,
अहंकार के सारे दोष जला देती,
कुंदन सा हमको दमकाती है।
0
तू सच्चा किरदार निभा,
बिना स्वार्थ व्यवहार निभा,
लाभ-हानि पर ध्यान न दे
अगर किया है प्यार निभा।
0
श्रम करने में कैसी लाज,
श्रम देगा उन्नति के ताज,
कवच बनाना तुम पौरुष का
झपटेंगे दुर्दिन के बाज।
0
तेरी तृष्णा न खा जाये ईमान को,
भेड़िया यह बनाती है इन्सान को,
संग लाती है दौलत, सभी व्याधियाँ
चाटना पड़ती है धूल धनवान को।
0
बहकने दीजिए मत जोश इस चढ़ती जवानी का,
सदा रहने नहीं पाता है यौवन रातरानी का,
बहुत सी गंदगी ढोकर ये अपने साथ लाता है
उफनना, कब भला होता उचित दरिया के पानी का।
नष्ट जहाँ संस्कृति समूल हो,
जहाँ ताक पर हर उसूल हो,
वहाँ पुलिस, कानून, न्याय में
परिवर्तन आमूल-चूल हो।
0
आजादी की अर्ध सदी का,
लेखा, नेकी और बदी का,
हाल राष्ट्र का वैसा ही है
ज्यों कीचड़ से भरी नदी का।
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पुत्रों को, टकसाल पिता है,
होता रहा हलाल पिता है,
जो था पूज्य, वृद्ध होने पर
अब जी का जंजाल पिता है।
0
भूखे श्रम की पीर वही है,
फटे हाल तस्वीर वही है,
चापलूस चमचमा गये हैं,
पर, पद दलित कबीर वही है।
0
कोई दृश्य ललाम न आया,
मन-वाँछित परिणाम न आया,
कितना भटकाया तृष्णा ने
मन का तीरथ धाम न आया।
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चमचों से नारे लगवाये,
औश् विकास के ढोल पिटाये,
किया उजागर सच, वोटर ने
हथकण्डे कुछ काम न आये।
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हर मंजर वीरान मिला है,
इन्सां लहूलुहान मिला है,
यह उनकी करनी है, जिनको
सत्ता का वरदान मिला है।
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जहाँ घृणा के गान मिलेंगे,
इन्सां लहूलुहान मिलेंगे,
नफरत फैलाने वालों को
नहीं राम-रहमान मिलेंगे।
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बंद नफरत का अगर बाजार हो जाये,
दुश्मनों से भी हमें यदि प्यार हो जाये,
चमन यह राष्ट्र का सींचें मुहब्बत से,
तो हर मौसम गुलो-गुलजार हो जाये।
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हमारे घर पे आया हर अतिथि भगवान है यारो,
समूचे विश्व में फैला यहाँ से ज्ञान है यारो,
जहाँ वेदों, पुराणों ने कहा परिवार दुनिया को
अहिंसा का पुजारी देश हिन्दुस्तान है यारो।
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जो सूखा सहरा होता है,
उसमें जल गहरा होता है,
जहाँ रहें अनमोल वस्तुएँ
उन पर ही पहरा होता है।
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दाम दूल्हों के जैसे सोने हैं,
मात्र शिक्षक के औने-पौने हैं,
माफिये बिक रहे करोड़ों में
क्या हुआ काम यदि घिनौने हैं।
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साँप नेवले सभी हमारे दिल में पलते हैं,
जैसे मन अपने हों वैसे रंग बदलते हैं,
ये अपने कुविचारों-सुविचारों के प्रतिनिधि हैं,
युद्ध हमेशा दो प्रवृत्तियों में ही चलते हैं।
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प्यार के मौसम जब भी आये,
लोगों ने पत्थर बरसाये,
फिर आफत आने वाली है,
तुमने फिर गेसू लहराये।
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अफवाहों ने पंख लगाये,
खौफनाक फिर मंजर आये,
अम्न-चैन के जो दुश्मन हैं,
उनने तिल के ताड़ बनाये।
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आज जिन्हें अधिकार मिले हैं,
करने अत्याचार मिले हैं,
अपराधी बेखौफ घूमते,
उनसे, थानेदार मिले हैं।
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नहीं इश्क का जब जुनून था,
मेरे जीवन में सुकून था,
उफनाया तो रोक न पाया,
नई आशिकी, नया खून था।
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चाल वो दुश्मनी की चलते हैं,
पैंतरे नित-नये बदलते हैं,
एक दिन तो, पनाह माँगी थी
आज छाती पे मूंग दलते हैं।
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कतरा-कतरा जुबान रखता है,
चश्मदीदी बयान रखता है,
घाव, अपनी जुबान खोलेगा
जुल्म की दास्तान रखता है।
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स्वार्थ में इन्सानियत, ईमान बेचे जा रहे,
अब दया, आशीष औ‘ सम्मान बेचे जा रहे,
राजनैतिक मंडियों में मजहबी व्यापार है,
आज दौलत के लिए भगवान बेचे जा रहे।
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रेशमी रिश्ते न तोड़ो फूलकर अभिनन्दनों में,
सूत्र नाजुक हैं मगर दृढ़शक्ति रक्षाबन्धनों में,
सद्गुणों की हो सुरभि तो दुष्ट भी वश में रहेंगे,
विष चढ़ा पाते नहीं हैं नाग जैसे चन्दनों में।
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अब प्रगति तो फाइलों परचों में है,
लूट, हत्या, बेबसी चरचों में है,
आदमी पशु से अधिक बदतर हुआ
राष्ट्र गिरवी, कर्ज औ’ खर्चों में है।
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