पर्यावरण के दोहे-आचार्य भगवत दुबे
1.
पर्यावरण बिगाड़कर, दिया प्रदूषण थोप
सूखा और अकाल से, प्रकृति जतावे कोप
2.
हरे भरे वन को करें, मूढ़ काट-वीरान
जंगल अब तपने लगे, जैसे रेगिस्तान
3.
राख धुंआ पेट्रोल की, भरे नाक में गंध
काट वनों को, मृत्यु का, खुद कर लिया प्रबंध
4.
जड़ी बूटियाँ फूल फल, शीतल पवन प्रसार
बिना स्वार्थ करते सदा, वृक्ष बड़ा उपकार
5.
फूल खिले मुस्कान के, शीतल बहे सुगंध
करें स्वस्थ तन के लिए, पर्यावरण प्रबन्ध
6.
निरपराध पर्यावरण, हुआ जेल में बन्द
आज प्रदूषण हो गया, अपराधी स्वच्छंद
7.
अपराधों के वन बढ़े, कटे वृक्ष निर्दोष
मद्य प्रदूषण का पिये, तृष्णा है मदहोश
8.
नर्तन बूंदों का नहीं, खिलें न सुख के फूल
फांसी पर जब से गये, जंगल सारे झूल
9.
शीतल जल की छागलें, सूख गई सब झील
निर्वासित वन से हुए, सीधे पादप भील
10.
रही न मादल में गमक, टिमकी में टनकार
मांगे से मिलता नहीं अब मधुमास उधार
11.
खुशबू का हमने किया, खुद ही नाकाबन्द
रहा गंदगी का मगर, आवागमन स्वछंद
12.
शस्त्र व्याधियों के लिए, खड़ा प्रदूषण काल
वृक्षों के बाँधो कवच, लो सफाई की ढाल
13.
गुमें न ये मधुमास के, बचे खुचे अवशेष
लाने पुनः बसंत को, उपक्रम करें विशेष
14.
कोपल के दिखते नहीं, अब अरुणाभ कपोल
वन काटे, गायब हुई, कुसुमित छटा अमोल
15.
आवागमन बसंत का, कहे न कोकिल कूक
अमरों का गुंजन हुआ, उद्यानों में मूक
16.
दिवस न मधुरितु के दिखें, पतझड़ पूरे साल
धुआं चिमनियों का हुआ, क्रूर कालिया ब्याल
17.
मंडराते हैं ब्योम पर, धुआं राख के गिद्ध
पशु पक्षी मानव हुए, आज प्रदूषणविद्ध
18.
कलरव अब करते नहीं, हंस पपीहा मोर
कर्कश गिद्धों का बढ़ा, उजड़े वन में शोर
19.
टूटा आज बसंत से, बच्चों का विश्वास
मरूथल में उनको मिली, अमराई की लाश
20.
चौमासे में भी रहा, सूर्य धरा को भंूज
प्यासे चातक की रही, टेर कान में गूँज
21.
घटा न उमड़ी देखकर, कटे वनों का रूप
प्यास-प्यास रटते रहे, नदी सरोवर कूप
22.
छतरी, सिर पर धूम्र की, सहें धूल का भार
घाव बका के देह पर, वृक्ष वृद्ध बीमार
23.
दंत कथायें श्रावणी, या बसंत इतिहास
खोजे से मिलते नहीं, अब पावस मधुमास
24.
पवन गुँजाती है नहीं, अब खुशबू के गीत
बाग न फूलों के मिलें, वृक्ष न फलते मीत
25.
कहाँ छाँव फल फूल अब, वृक्षों के परिदृश्य
आँखों से होने लगे, जंगल सभी अदृश्य
26.
हरी पताका चीड़ की, शीशम के जयकेतु
प्राणवायु के प्राण से, टूटे शीतल सेतु
27.
भेदभाव बिन दें हमें, छाया सुमन सुगन्ध
वृक्ष-लताओं का करें, फिर से सघन प्रबन्ध
28.
वृक्ष फूल फल छाँव दें, हवा आग आहार
कट कर भी करते विटप, अपनी कश्ती पार
29.
बिना मिलावट वृक्ष दें, शुद्ध सभी उपहार
उन्हें खाद पानी मगर, मिले मिलावटदार
30.
आओ हरियाली लिखें, हम मरूथल के नाम
बादल पवन सुगंध के, हों सुफलित परिणाम
31.
रहे चतुर्दिक स्वच्छता, पानी पवन पवित्र
छिड़कें फूल, पराग का, सब पर सुरभित इत्र
32.
जिनके भाषण का विषय, पर्यावरण सुधार
वृक्ष उन्हीं ने काटकर, जंगल लिए डकार
33.
फागुन में गूँजे नहीं, मादल ढोल मृदंग
झांझ मजीरा मौन हैं, घायल वन के अंग
34.
चाँदी के गमले जहाँ, स्वर्णलता की बेल
पर्यावरण उजाड़ते, ये वैभव के खेल
35.
व्याधि वसीयत में मिली, मरूथल के भूखंड
पेड़, पिता ने काटकर, दिया पुत्र को दंड
36.
हंस न दिखते हास के, है झंझा की झील
कमल कल्पना हो गये, अमर हुए अब चील
37.
शेफाली की डालियाँ, दी माली ने काट
हरियाली की प्यालियाँ, ली तृष्णा ने चाट
38.
खंजर जैसी रेतती, गर्म हवा की धार
चिन्गारी मिश्रित हुई, बदबू की बौछार
39.
जंगल में नाचे नहीं, बिना घटा के मोर
मातम वन की मौत का, छाया चारों ओर
40.
सुबह शाम है कालिमा, मलिन क्षितिज अधरोष्ठ
केशर की क्यारी लगे, ज्यों काजल का कोष्ठ
41.
सन्नाटों में खो गई, मन्द पवन की बीन
कीर कोकिला के लिए, गीत हमीं ने छीन
42.
चुप्पी के पहरे लगे, हुई कोकिला मौन
तितली फूल वसंत के, गीत सुनाये कौन
43.
घटा धुंये को कह लिया, शुष्क रेत को नीर
वृक्ष लौह सीमेन्ट के, भोंपू कोकिल कीर
44.
यक्ष प्रदूषण कर रहा, हरियाली के प्रश्न
प्यासे पाण्डव सब थके, मेघ न आये कृष्ण
45.
पिघली बर्फ हिमाद्रि की, गये सरोवर सूख
जल देवें कैसे जलद, काट लिए जब रुख
46.
वन उपवन के कर दिये, घायल लोहित अंग
बचे पहिचानें भला, क्यों हरियाला रंग
47.
फिरते छाँव तलाशते, झरे विटप के पात
धुआँ राख चिन्गारियाँ, लाती है बरसात
48.
शरमाते हैं देखकर, रुप स्वयं का फूल
बौनापन आकार में, रंग नहीं आमूल
49.
ऋषियों ने वन में किये, रहकर अनुसंधान
औषधि की जड़ियाँ रही, अब तक श्रेष्ठ प्रमाण
50.
जोड़ा आयुर्वेद में, ज्योतिष का अध्याय
बतलाया पर्यावरण, उन्नति का पर्याय
51.
देते रहे किसान को, पशु पक्षी संकेत
जिनसे लेकर सूचना, कृषक जोतते खेत
52.
वर्षा, सूखा रोग का, जो देते संकेत
उन्हीं जन्तुओं ने रखे, उर्वर अब तक खेत
53.
बोलें भींगुर रात भर, औ चिल्लाये गोह
वर्षा से फिर राह की, मिले न तुमको टोह
54.
बैठ बकरियाँ बाड़ तट, छीकें बारम्बार
बरसे समझो शीघ ही, घटा मूसलाधार
55.
चोटी पर चढ़ वृक्ष की, बैठे काला नाग
नदी सरोवर के जगें, समझो सोये भाग
56.
प्राची से पश्चिम भगे, उड़ उड़ श्याम पयोद
नदी तलैयों की भरे, तब पानी से गोद
57.
जोड़ा सारस का उड़े, यदि ऊंचे आकाश
भारी वर्षा पर कृषक, रखे सुदृढ़ विश्वास
58.
पी-पी रटे पपीहरा, मुरझें कली करील
भारी वर्षा से भरें नदी सरोवर झील
59.
पावस ऋतु में प्रात ही, सूरज तपे प्रचंड
तो वर्षा अतिशीघ्र ही, हो घनघोर घमंड
60.
बत्तख चिल्लाने लगे, गर्मी के घाम
घी पिघले, सावन झरे, पावस में अविराम
61.
विषधर जो बट पर चढ़े, छिपें दादुरे बाड़
कांसा पड़े मलीन तो, बरसे खूब अषाढ़
62.
उत्तर में काली घटा, तपे ताल का नीर
लड़े बिल्लियां जानिये, हो वर्षा गम्भीर
63.
बादल छायें व्योम पर, ज्यों तीतर का रंग
उमड़ घुमड़ छाये घटा, है वर्षा का ढंग
64.
खट्टा होवे यदि मठा, बोलें सघन मयूर
घिरे मेघ आकाश के, बरसेंगे भरपूर
65.
कागा बोले रात में, दिन में बोले स्यार
सूखा और अकाल के, समझो हैं आसार
66.
मटकों का जल हो गरम, चिड़ियाँ खेलें धूल
वर्षा के संकेत शुभ, कृषक न जायें भूल
67.
गिरिगिट चढ़कर वृक्ष पर चले जो उल्टी चाल
वर्षा से समझो कृषक, होंगे मालामाल
68.
अंडे ले चींटी चले, बना समूह कतार
समझो होगी शीघ ही, वर्षा की बौछार
69.
जो ढेले पर बैठकर, चींची चींखे चील
मेघ न वर्षा में करें, समझो किंचित ढील
70.
लगे लोमड़ी बोलने, वन में फूले काश
स्वच्छ रहेगा मेघ से, अब समझो आकाश
71.
आस पास उड़ने लगे, जब टिड्डों की भीड़
मेघ गिरा दे बरसकर, पंछी तक के, नीड़
72.
उत्तर पश्चिम से करे, चलकर पवन प्रसार
समझो होगी शीघ ही, वृष्टि मूसलाधार
73.
गुड़सा चढ़ आकाश पर, बोले ऊंचे बोल
मेघ करें बरसात में, समझो टालमटोल
74.
गिरगिट का रंग वृक्ष पर, लोहित स्याह सफेद
बुन्दबान से मेघ फिर, देंगे धरती छेद
75.
लवा निकलकर सामने, फुदके बारम्बार
लक्षण हैं बरसात के, करें मेघ बौछार
76.
मिमयावे बकरी अगर करके मुँह उत्तान
गरज गरज बरसे घटा, छिए जाये दिनमान
77.
बिल्ली बच्चे दे अगर, चार, एक, दो तीन
पावस उतने मास की, समझो कृषक प्रवीण
78.
नहीं फोड़ती टिटहरी, जब तक अंडे, बैठ
बिन बरसे तब तक जलद, रहें धरा से ऐंठ
79.
आभा मंडल रात में, घिरे चाँद के पास
अभी दूर है जानिये, वर्षा का उल्लास
80.
मंडल आभा का अगर, बने चाँद से दूर
वर्षा उतने पास है, समझें कृषक मयूर
81.
खांसे-धांसे गाय यदि, होकर के बेचैन
शुभ लक्षण बरसात के, झरें मेघ दिन रैन
82.
उड़ उड़ घिरे समूह में, शलभ दीप के पास
ये भारी बरसात के, लक्षण जानो खास
83.
चींटों को यदि पर लगें, उडं़े पतंगे खूब
दिखे न जानो वृष्टि से, तुम्हें धरा की दूब
84.
पर्यावरण सुधार का रुके न अब अभियान
गावें पुनः मनुष्य का, पशु पक्षी यशगान
85.
पशु पक्षी के स्वर रहे, मौसम के सिद्धांत
वनचर हुए विलुप्त जब, लोग हुए दिग्भ्रांत
86.
प्रकृति संतुलन को रखें, पर्यावरण नियोज्य
जीव जन्तु वन, वृक्ष हैं, संरक्षण के योग्य
87.
काटो, काठ इमारती, जो हों कटने योग्य
खाली जंगल में मगर, रोपो वृक्ष सुयोग्य
88.
हम ज्योतिष, नक्षत्र का, भुला चुके हैं ज्ञान
गतियाँ जिनकी ज्ञात कर, रहे समर्थ किसान
89.
कृषि, वानिकी मुहूर्त का, सीखें फिर से ज्ञान
पशु पक्षी पर्यावरण, राधे ठीक किसान
90.
जीव जन्तु पर्यावरण, रहे प्रकृति के मित्र
वन उजाड़ गायब किये, वे लुभावने चित्र
91.
आस पास दें आद्रता, जामुन, बरगद, आम
किन्तु नीलगिरि सोखकर, पानी करे तमाम
92.
कभी न देता कार्बन, लघु तुलसी का झाड़
तुलसीदल रखिये सघन, खरपतवार उखाड़
93.
हवन गंध से हो सदा, पर्यावरण सुधार
ऋषि मुनि, नृप करते रहे, यज्ञ हजारों बार
94.
आये समिधा के लिए, जिनकी लकड़ी काम
वातावरण सुधारते, पीपल, पाकड़, आम
95.
तन, मन दोनों स्वस्थ हों, जहाँ प्रदूषणहीन
जनहितकारी सर्जना, होती वहीं नवीन
96.
आस पास पर्यावरण, जब होता है शुद्ध
वहाँ पनप पाते नहीं, कटु कुविचार अशुद्ध
97.
दूषित हो वातावरण, रहता रुग्ण शरीर
पड़ते पूर्ण समाज पर, दुष्प्रभाव गंभीर
98.
वन, उपवन, निर्झर, नदी, पादप, पवन पवित्र
हितकारी हैं स्वास्थ्य के, जड़ी, फूल, फल मित्र
99.
दिखे जहाँ खाली जगह, वहीं लगा दो वृक्ष
वृक्षारोपण सा नहीं, यज्ञ कहीं समकक्ष
100.
हों सड़कें पगडंडियाँ, वृक्षों से भरपूर
गाँव शहर से व्याधियाँ रहें हमेशा दूर
101.
धरा हरिच्छादित रहे, वृक्षों से रमणीय
पर्यावरण सुधार का, धर्म श्रेष्ठ वरणीय
102.
पानी बिना न सोहते, नदी झील या ताल
पानी से उपजें फसल, लोग रहें खुशहाल
103.
विगसें पानी में कमल, विचरें बकुल मराल
घटा न बरसे वृक्ष बिन, पड़ते सदा अकाल
104.
रिश्ता प्रकृति मनुष्य का, शाश्वत रहा अटूट
बिना शुद्ध पर्यावरण, सुख के सपने झूठ
105.
पोषणकारी वृक्ष हैं, जीव जन्तु के मित्र
प्राणी को पर्यावरण देता शक्ति विचित्र
106.
सेवा प्राणी की करें, पानी पवन पहाड़
कभी न काटो भूलकर, तुम हरियाले झाड़
107.
रखते सोते-जागते, पादप सेवाभाव
वृक्ष-फूल, फल छाँव का, रहता नहीं अभाव
108.
जब तक थे जंगल घने, भरा रहा धन धान्य
पेड़ कटे, वर्षा घटी, है दुर्लभ खाद्यान्न
109. रक्षा माता सी करें, ते शीतल छाँव
वृक्षों से समृद्ध हों, देश नगर व गाँव
110.
मेघ वहीं वर्षा करें, जंगल जहाँ समृद्ध
रखवाली करते विटप, मात पिता से वृद्ध
111.
विपुल संपदा दें हमें, बिना स्वार्थ ये वृक्ष
दानशीलता में नहीं, इन सा कोई दक्ष
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