कसक-आचार्य भगवत दुबे
आज हिन्दी में भी, शीर्ष पर है ग़ज़ल
हुक्मरानों के आगे, निडर है ग़ज़ल
लेकर विद्रोही तेवर, मुखर है ग़ज़ल
घंुघरू परतंत्रता के, न पाँवों में अब
आशिकी का, न केवल हुनर है ग़ज़ल
हर्म से अब नवाबों के, बाहर निकल
होकर आजाद, फुटपाथ पर है ग़ज़ल
महफिलों का, न केवल ये अंगार है
जिन्दगी का, समूचा सफर है ग़ज़ल
ऐशो-आराम का मखमली पथ नहीं
कंटकों, पत्थरों की डगर, है ग़ज़ल
खेत-खलिहान, जंगल, नदी, ताल, जल
मोट, हल, बैलगाड़ी, बखर है ग़ज़ल
गाँव, तहसील, थाना, कचहरी जिला
राष्ट्र क्या, विश्व से बाखबर है ग़ज़ल
प्रान्त, भाषा न मजहब की सीमा यहाँ
आप जायें जिधर, ये उधर है गजल
मुक्तिका, गीतिका, तेवरी कुछ कहें
आज हिन्दी में भी, शीर्ष पर है ग़ज़ल
000
यह कसक पुरानी है
पीड़ाओं पर और अधिक, छा रही जवानी है
सदा टीसती रहती है, यह कसक पुरानी है
गम मेरा सच्चा साथी है साथ नहीं छोड़ा
मुझसे हर पल, खुशियों ने की, आना-कानी है
तेरी यादों की बगिया है अब तक हरी-भरी
इसमें सींचा गया सदा, आँखों का पानी है
साथ तुम्हारे ही, बहार ने भी मुँह मोड़ लिया
तुम रहते हो जहाँ, वहाँ की फिजा सुहानी है
जहर पचाना सीख गया मैं, धन्यवाद उनको
मुझे मिटा देने की जिनने मन में ठानी है
कहीं प्रीति तो कहीं घृणा-नफरत ही पलती है
यमुना की जलधार कहीं रावी का पानी है
केवल तुम ही नहीं दुखी आचार्य, और भी हैं
झोपड़ियों की नहीं, ‘खुशी’ महलों की रानी है
000
वो पहले प्यार के लमहे
वो, पहले प्यार के लमहे कहाँ बिसराये जाते हैं
घुमड़कर और गहरे तक, दिलों पर छाये जाते हैं
यहाँ काँटों में पलकर भी, जिये हम शान से लेकिन
वहाँ, फूलों के बिस्तर पर भी, वो मुरझाये जाते हैं
यहाँ तो, देखने उनको, ये आँखें कबसे प्यासी हैं
हमामों में वहाँ, वो देर तक नहलाये जाते हैं
वो, सजकर, डोलियों में जब कभी बाहर निकलते हैं
तो, काँधे आशिकों के ही, वहाँ लगवाये जाते हैं
उन्हें जिद है, निशाना साधने, आखेट करने की
बना गारा, मचानों से हमीं बँधवाये जाते हैं
उतारू जान लेने पर है, परवानों की, ये शम्मा
दिखाने आतिशी जल्वे हमीं बुलवाये जाते हैं
तरीका है हसीनों का अजब श्रृंगार करने का
लहू, आशिक के दिल का ले, अधर रचवाये जाते हैं
जलाकर, आशियाँ मेरा, वो दीवाली मनाते हैं
कहर, आचार्य हम पर इस तरह के ढाये जाते हैं
000
फूल मेरी किताब में आये
लाख चेहरे, हिसाब में आये
उनके जैसे, न ख्वाब में आये
उम्र का, हुस्न पर चढ़ा पानी
अंग उनके, शबाब में आये
उसकी खुशबू से, खूब परिचित हूँ
चाहे कितने नकाब में आये
गुफ्तगू मुझसे, बात दुश्मन की
ज्यों कि, हड्डी कबाब में आये
याद मेरा पता तो है उसको
कोरे पन्ने, जवाब में आये
नाम का जाम पी लिया तेरा
अब, नशा क्या शराब में आये
000
तुम न होते तो, हम किधर जाते
रात भर, आप जो ठहर जाते
बीत, तनहाई के पहर जाते
रूठकर वो चले गये मुझसे
जाते-जाते तो बोलकर जाते
थोथे ईमान-धर्म हैं उनके
अपने वादों से जो मुकर जाते
हादसों में जो घर उजड़ते हैं
कितने सपने, वहाँ बिखर जाते
छूट गर्दिश में सब गये साथी
तुम न होते तो, हम किधर जाते
साथ तेरा न जो मिला होता
जिन्दगी के, कठिन सफर जाते
000
मिल गया, जिन्दगी का सहारा मुझे
मुस्कुराकर जो तुमने निहारा मुझे
मिल गया आशिकी का इशारा मुझे
टूटकर मैं बिखरने लगा था, तभी
जाने क्यों, आपने फिर सँवारा मुझे
करके बर्बाद तुमने, निरंतर दिया
अपनी यादों का ‘भत्ता गुजारा’ मुझे
आज लोगों ने कितनी खुशी बक्श दी
नाम के सँग तुम्हारे, पुकारा मुझे
एक दूजे का विश्वास, हम बन गये
मिल गया, जिन्दगी का सहारा मुझे
प्यार का सिन्धु, आगोश में ले चुका
चाहता हूँ मिले ना किनारा मुझे
000
प्यार की हद से गुजर जाने दो
प्यार की हद से, गुजर जाने दो
जिन्दगी, आज सँवर जाने दो
एक मुद्दत के बाद आये हो
आज मत कहना कि, घर जाने दो
तेरी जुल्फों की छाँव, शीतल है
इनको, कुछ और बिखर जाने दो
ऐ घटाओ जरा जमकर बरसो
मेरे महबूब को न जाने दो
ये जो सैलाब ख्वाहिशों का है
आज इसको तो उतर जाने दो
000
जिसने देखा तेरा जलवा
जितना चाहा, तुम्हें भुलाना, ध्यान तुम्हीं पर जाता है
मेरा यह शीशा दिल, जाने क्यों पत्थर पर जाता है
सहरा में जाकर के, कितनी नदियाँ सूख गईं
उसकी प्यास बुझाने वाला, खुद प्यासा मर जाता है
जिसने देखा एक बार, हो गया तुम्हारा दीवाना
इस ही कातिल एक अदा पर, हर कोई मर जाता है
जिसने देखा तेरा जलवा, उसको होश नहीं रहता
तू तो परदे में रहकर भी, यह जादू कर जाता है
तेरी शोहरत का दीवाना, एक अकेला मैं हूँ क्या
हर कोई लेकर मुराद, तेरे ही दर पर जाता है
यमुना तट की रेत सुबह मिलती है मेरी मुट्ठी में
तेरी यादों में, वृन्दावन जैसा, घर हो जाता है
000
एक सैलाब आज आया है
प्यास, प्राणों की, बुझाते रहना
जाम आँखों के, पिलाते रहना
गेसुओं की, घटाएँ घिरने दो
छाँव इनसे ही दिलाते रहना
गीत की लय, न टूटने पाये
अपनी आवाज, मिलाते रहना
बाहुपाशों को, और कस लो तुम
ताप चढ़ता है, चढ़ाते रहना
फैलने दो सुगंध, यौवन की
फूल अधरों के, झराते रहना
आज झंकृत हुई है, तन-वीणा
उँगलियाँ इसपे चलाते रहना
एक सैलाब आज आया है
नाव मिलकर के बढ़ाते रहना
पार कश्ती को, कर ही लेंगे हम
हौसला, आप बढ़ाते रहना
000
कोई तो रास्ता होगा
स्वर्ग में यह कहाँ मजा होगा
जब न महबूब ही वहाँ होगा
कोई चाहत न आरजू कोई
ऐसी दुनिया में क्या धरा होगा
दोस्ती खत्म यूँ नहीं होती
कोई न कोई बेवफा होगा
आग नफरत की क्यों नहीं बुझती
इसका कोई तो रास्ता होगा
दुश्मनी, बेवजह नहीं होती?
जख्म दिल पर, दिया गया होगा
झुक गई जो कमर जवानी में
बोझ बेटी का भी, रहा होगा
000
तेरी निगाह ने फिर आज कत्लेआम किया
मैंने, इजहार मुहब्बत का सरेआम किया
आप बतलाएँ, भला या कि बुरा काम किया
साजिशें की, मुझे बदनाम करने की लेकिन
खुदा का शुक्र है, जिसने उन्हें नाकाम किया
मेरी शोहरत से, कई लोग हैं जलने वाले
किन्तु ताज्जुब है कि, अपनों ने भी बदनाम किया
जिसको चाहा था, वही गैर की बाँहों में मिला
जबसे टूटा है भरम, चैन है, आराम किया
परिन्दे चाहतों के, फिर से चहके, आप जो आये
ये जादू कौन सा तुमने मेरे गुलफाम किया
न जाने सीखकर कातिल अदाएँ, किससे आयी है
तेरी निगाह ने, फिर आज कत्लेआम किया
000
क्या बाँकी, चंचल चितवन के
उसके अधरों पर कम्पन है
प्रेम-रोग से व्याकुल मन है
जिसे देख ले, खिले कमल-सा
क्या बाँकी, चंचल चितवन है
एक नजर में, भरी भीड़ में
पलक झुकाकर किया नमन है
पल में, छुअन गुलाबी तन की
मीठी-सी, दे गई चुभन है
पियो रूप, रस, गंध दूर से
नागों से लिपटा, चंदन है
सूखें फूल, गंध उड़ जाये
यह, शाश्वत जीवन-दर्शन है
000
अहसास की बातें
करते हो, आज क्यों फिर उल्लास की बातें
पूछीं न तुमने मुझसे संन्यास की बातें
पतझर के सिवा, हमने जीवन में कुछ न पाया
करती रहीं छलावा, मधुमास की बातें
दो बोल अपनेपन के, सुनने को तरसे हैं हम
सबसे मिली हैं सुनने, उपहास की बातें
रस-रंग की कथाएँ, कैसे उसे सुहायें
जिसने सुनी हैं हर पल, संत्रास की बातें
आस्थाएँ हैं अपाहिज, श्रद्धा हुई है घायल
लगतीं फरेब जैसी, विश्वास की बातें
हारा नहीं है जीवन, मेरा विपत्तियों से
विपदा ने की हैं मुझसे, उल्लास की बातें
है खंडहर ही केवल, अब साक्षी समय का
हर ईंट ने सुनी हैं, अहसास की बातें
000
प्यार से जीत लूँ जहाँ सारा
मैं, तेरे नाम का प्याला चाहूँ
अब, न कोई दूसरी हाला चाहूँ
दाग, जिसमें न हों बुराई के
पुण्य का दिव्य दुशाला चाहूँ
मैं भी, अंधा था मोह माया में
ज्ञान का, सिर्फ उजाला चाहूँ
नफरतें बो रहे हैं, सब मजहब
धर्म, इन्सानियत वाला, चाहूँ
नाम, हर साँस में तुम्हारा हो
जिन्दगी की, वही माला, चाहूँ
प्यार से, जीत लूँ जहाँ सारा
कोई बन्दूक न भाला चाहूँ
000
तुम्हारी याद का सावन
करम तेरी निगाहों का जरा-सा जो इधर रहता
तो क्या, घर में मेरे, तनहाइयों का जानवर रहता
वहाँ मौसम बदलते हों, यहाँ तो एक ही ऋतु है
तुम्हारी याद का सावन, बरसता सालभर रहता
हवायें कब, संदेशा मौत का, लेकर के आ जायें
इसी से, घर के दरवाजे, हमेशा खोलकर रहता
उसे, मैं भूल भी जाऊँ, मगर वह याद रखता है
मेरे हालात से, इक पल नहीं वह बेखबर रहता
गिला, शिकवा-शिकायत, भूलकर भी मैं नहीं करता
भले, माने न वह, लेकिन मैं अपना मानकर रहता
इशारा यदि जरा-सा भी, मुझे ‘आचार्य’ कर देते
तो मैं ताजिन्दगी जाकर उन्हीं के द्वार पर रहता
000
पास से, जब तू गुजर जाता है
पास से, जब तू गुजर जाता है
पाँव तब मेरा बहक जाता है
तुम जो झूठे ही रूठ जाते हो
मेरा दम सच में निकल जाता है
मेरी मंजिल करीब है लेकिन
फासला और भी बढ़ जाता है
उसके आने से फूल खिलते हैं
फिर भी आने से वह लजाता है
इत्र जब तुम वहाँ लगाते हो
गाँव खुशबू से महक जाता है
मेरा मंदिर, यहीं-कहीं होगा
रास्ता, तेरे ही घर जाता है
000
साक्षात् भगवान हो गया
अपना लक्ष्य समान हो गया
कठिन सफर, आसान हो गया
तुमको पाया, मेरे दिल का
पूरा, हर अरमान हो गया
बाँहों में भर लिया तुम्हें जब
स्वतः, शांत तूफान हो गया
प्यार भरा, तेरा खत आया
जीने का सामान हो गया
तुमने जो चख लिया जरा-सा
मीठा हर पकवान हो गया
जब तुमने, मुझको अपनाया
वह पल, स्वर्ग समान हो गया
जो, गर्दिश में बना सहारा
साक्षात् भगवान हो गया
000
नाहक, तीरथधाम किया है
ऊँचा, तेरा नाम किया है
पर, तुमने बदनाम किया है
तुम कतराते रहे, हमेशा
मैंने, सदा प्रणाम किया है
वादा किया, न फिर भी आये
जीना यहाँ हराम किया है
मैंने, रात तड़पकर काटी
तुमने तो आराम किया है
दर्शन तेरे, हुए न पहले
नाहक, तीरथधाम किया है
चलो, देर से ही आये, पर
वातावरण ललाम किया है
प्रणय कथानक, बढ़ सकता है
अभी न, पूर्ण विराम किया है
000
खुद ही उंगली जला ली आपने
बात मेरी न टाली आपने
लाज सबकी बचा ली आपने
बंद, मुंह, कर दिया जमाने का
माँग भर दी जो खाली आपने
तोड, जंजीर रूढ़ियों की सब
हथकड़ी धागे की, डाली आपने
काटकर कुप्रथाओं के पर्वत
राह उससे निकाली आपने
शत्रु लाचार को, शरण देकर
कितनी जोखिम उठा ली आपने
शांति के यज्ञ में, हवन करके
खुद ही, उंगली जला ली आपने
आग मजहब की तो, बुझा आये
दुश्मनी, कितनों से पाली आपने
000
याचनाओं का भरण होने लगा
प्यार का, उनके हृदय में अंकुरण होने लगा
आजकल उनका, द्रवित अंतःकरण होने लगा
रूठने का भी बहाना अब नहीं वे ढूंढ़ते
हर जटिल प्रश्नों का भी सरलीकरण होने लगा
अब हमारी भावनाओं का अनादर भी नहीं
एक दूजे की सदिच्छा का वरण होने लगा
ना-नुकुर उनके दिखावे के लिये हैं मात्र अब
हर निवेदक याचनाओं का भरण होने लगा
उनके कोमल हाथ का, जब स्पर्श मुझसे हो गया
देह में, रोमांचक तब से स्फुरण होने लगा
कसमसाकर उनने बाँहों में मुझे जब से भरा
धमनियों में, तेज रक्तिम संचरण होने लगा
नींद भी आती नहीं, उनके बिना तो आजकल
रात को भी, याद के सँग, जागरण होने लगा
000
कद्रदां, कोई बुलाये न गये
अपने हालात, दिखाये न गये
दिल के जज्बात, बताये न गये
रोज लिखते हैं खत मुझे लेकिन
फाड़ देते हैं, पठाये न गये
दस्तकें देकर लौट आया हूँ
आप सोते थे, जगाये न गये
होंठ तो, बंद कर लिए हमने
अश्रु आँखों के, दबाये न गये
आज महफिल सजाई है उनने
कद्रदां कोई बुलाये न गये
मेरे मरने का गम उन्हें कैसे
जिनसे, दो अश्रु गिराये न गये
चाँदनी से मुझे नहाना है
आज उनका नया बहाना है
साथ में, फिर किसी के जाना है
गीत, उनको ही ये सुनाना है
इसमें, उनका ही तो फसाना है
वो तो मेंहदी लगाये बैठे हैं
और क्या क्या अभी लगाना है
रंग सोने-सा है, बदन चाँदी
हुस्न का कीमती खजाना है
आज फिर हो गये खफा मुझसे
रोग उनका तो ये पुराना है
तीरगी है, बुलाइये उनको
चाँदनी से मुझे नहाना है
000
आप बुलाने आये
आज क्या बात है जो आप मनाने आये
फिर से, अहसान नया मुझपे जताने आये
आये हैं आतिशी अंदाज में सँवरकर वो
जब भी आये हैं, इसी भाँति जलाने आये
मेरी पुस्तक में, मिला फूल एक मुरझाया
झूल, आँखों में कई दृश्य पुराने आये
आज फिर देर तक बोला मुँडेर पर कागा
लौटकर क्या, वही पल फिर से सुहाने आये
उनकी यादों ने, मुझे चैन से सोने न दिया
ख्वाब में आये, तो बस मुझको रुलाने आये
कितने परिचित, यहाँ चेहरे दिखाई देते हैं
याद, गुजरे हुए इक साथ जमाने आये
लेके, सद्भाव का मरहम निकल पड़े हैं वो
दुश्मनी, ऐसे ही हर बार भंजाने आये
000
खुद को मैंने पा लिया
आज मैंने फिर, भुजाओं में तुम्हें लिपटा लिया
अपने दिल को ख्वाब में ही, इस तरह बहला लिया
मैं तो, तुमको देख करके झूम खुशियों से उठा
जाने क्यों तुमने मगर मिलते ही मुँह लटका लिया
आज खाने में, तुम्हारे हाथ की खुशबू न थी
याद यूँ आयी, निवाला हलक में अटका लिया
अपने घर वालों की यादों का करिश्मा देखिये
बूट पालिश करने वाले बच्चे को सहला लिया
संस्कृति से कट गया है, ओहदा पाकर बड़ा
प्यार की हल्दी का छापा, शहर में धुलवा लिया
जिस्म था मेरा, मगर इसमें न मेरी जान थी
तुमको क्या पाया कि जैसे, खुद को मैंने पा लिया
000
रूप का गर्व मत करो इतना
रूप का गर्व मत करो इतना
आसमाँ पर, नहीं उड़ो इतना
वक्त पर काम, हम ही आयेंगे
जुल्म अपनों पे, न करो इतना
नागिनी ये लटें तुम्हारी हैं
खोलकर मत इन्हें रखो इतना
किसकी, नीयत खराब हो जाये
सब पर, विश्वास मत करो इतना
कौन, कब छीन ले तुम्हें मुझसे
तुम अकेले नहीं फिरो इतना
जान मेरी निकलने लगती है
दूर, मुझसे नहीं रहो इतना
000
चातक व्रत का वरण किया है
शायद तुमने स्मरण किया है
रातों को जागरण किया है
कुशगुन के करील क्यों आये
जब शुभ हस्तांतरण किया है
था सुखान्त सम्पूर्ण कथानक
क्यों दुखान्त संस्करण किया है
यह वक्रोक्ति समझ ना आये
कठिन, प्रणय व्याकरण किया है
परकीयक आरोप मढ़ो मत
चातक व्रत का वरण किया है
पल में, पिघल जाएगा, जो यह
पत्थर अंतःकरण किया है
मैं रूठा, तो पछताओगे
अब तक तो संवरण किया है
000
धुंधले नक्शे कदम रह गये
अपनी हद में न हम रह गये
दंग, दैरो हरम रह गये
अनुसरण न बड़ों का किया
धुंधले, नक्शे कदम रह गये
छोड़ महफिल को, सब चल दिये
सहते हम ही सितम रह गये
आशिकी का नतीजा है ये
सर हमारे कलम, रह गये
हुस्न उनका जो ढलने लगा
चाहने वाले, कम रह गये
वो न साकी न वैसी है मय
मयकशी के वहम रह गये
मयकशी के, चले दौर फिर
जब, न महफिल में हम रह गये
000
दम भले ही हमारा निकलता रहे
जब तलक चाँद छत पर टहलता रहे
खौफ तनहाइयों का भी टलता रहे
अपने होंठों से, साकी पिलाये जो तू
दौर, फिर मयकशी का ये चलता रहे
गर्म साँसें जो साँसों से मिलती रहें
इन शिराओं का शोणित पिघलता रहे
पत्थरों से भी रसधार आने लगे
तू जो हौले से इनको मसलता रहे
वो न आएँगे मेंहदी लगाये बिना
दम, भले ही हमारा निकलता रहे
000
हैं बाण विषबुझे सब, उनकी जुबान के
कमरे खुशी से खाली दिल के मकान के
आने से भर गये हैं इक मेहमान के
बाँकी वो उनकी चितवन, कितनों की जान लेगी
पैने हैं तीर, उनकी भ्रू की कमान के
जिनने सबक सिखाया, इन्सानियत का हमको
बदले हैं अर्थ हमने, गीता-कुरान के
नफरत, घृणा, अदावत, आतंकवाद जैसे
सामान मजहबी हैं, उनकी दुकान के
लाशों के ढेर जिनकी आवाज पर लगे हैं
हैं बाण विषबुझे सब, उनकी जुबान के
000
पास, अधर अंगार करो
मन्मथ का उपचार करो
प्रिये आज सहकार करो
पावक से, यह आग बुझे
पास, अधर अंगार करो
बड़े कीमती ये पल हैं
अब न, मुहूर्त विचार करो
वर्षों से जो सजा रखे
वे सपने, साकार करो
नया गीत अनमोल रचें
सृजन पंथ स्वीकार करो
प्रेम, सृष्टि का सर्जक है
प्यार, प्यार बस प्यार करो
000
देखकर चाँद भी तुमको, जल जाएगा
कल की बातें न कर, देखा कल जाएगा
ये मिलन का मुहूरत निकल जाएगा
आज भी तेरा कल, कल में बदला अगर
देखना, दम हमारा, निकल जाएगा
हुस्न पर थोड़ा परदा रखा कीजिए
देखकर, चाँद भी तुमको, जल जाएगा
हस्न के ये शरारे, न भड़काइये
पास आने से, पत्थर पिघल जाएगा
वादियों में अकेले न घूमा करो
कोई भँवरा, कभी भी मचल जाएगा
रूप पर अपने, इतना न इतराओ तुम
एक दिन, रूप-यौवन भी ढल जाएगा
000
पता मुझे है जन्नत का
हूँ बीमार, मुहब्बत का
पता, मुझे है जन्नत का
सूरत, भोली-भाली है
दीवाना हूँ, सीरत का
याद करूँ, दिन-रात तुम्हें
समय कहाँ है, फुर्सत का
कैसे भूलूँ तुम्हें भला
तुम हो हिस्सा, फितरत का
तेरे दर पर, आ न सका
डर है, तेरी इज्जत का
दर से खाली गया, तो क्या
होगा, तेरी शोहरत का
000
बर्फ जैसे कि जनवरी माँगे
प्रेयसी, मेरी डायरी माँगे
बर्फ, जैसे कि जनवरी माँगे
रौब, अपना उसे जमाना है
इसलिए, मेरी शायरी माँगे
सेतु, सौहार्द के बनाने को
प्रेम की रेत, गिलहरी माँगे
कट गया है कदम्ब, वृन्दावन
कृष्ण क्यों माँ से बंसरी मांगे
चौक-चांदन, पढ़ाई के खर्चे
ब्याह में, बाप डावरी माँगे
माँग, मंदिर की अब करे मुस्लिम
काश, हिन्दू भी बाबरी माँगे
000
तो सुख सारे मिल जायें
हृदय हमारे मिल जायें
तो सुख सारे मिल जायें
दाह बुझे, जो अधरों के
ये अंगारे मिल जायें
तुम चाहो, तो दोनों के
दिल बेचारे मिल जायें
जलूँ शौक से, यदि छूने
रूप शरारे, मिल जायें
डूबूं तेरे संग, भले
मुझे किनारे मिल जायें
तू न मिले तो, व्यर्थ मुझे
चाँद-सितारे मिल जायें
000
कोई मतलब की बात होने दो
दिल की धड़कन की, बात होने दो
अब, मुहब्बत की बात, होने दो
जिससे, रोमांच हो शिराओं में
उस शरारत की, बात होने दो
ज्येष्ठ संत्रास का, बिता आये
अब तो, सावन की बात होने दो
अपने सौहार्द, हों सुदृढ़ फिर से
अब न नफरत की बात होने दो
जिससे, सारी फिजाँ महक जाये
उस तबस्सुम की, बात होने दो
वक्त, बरबाद मत करो अपना
कोई, मतलब की बात होने दो
000
मुझमें है मेरा कातिल
मुझमें है मेरा कातिल, मुझको पता न था
साजिश में तुम हो शामिल, मुझको पता न था
जिसने डुबाई कश्ती, था आसरा उसी का
दुश्मन बनेगा साहिल, मुझको पता न था
विष ब्याल है प्रदूषण, कितने करीब उनके
हैं लोग इतने गाफिल, मुझको पता न था
हम वृक्ष पूजते हैं, वे उनको काटते हैं
हमको कहेंगे जाहिल, मुझको पता न था
बेटे हुनर बताते हैं, कामयाबियों के
वे हो गये हैं काबिल, मुझको पता न था
000
ये चादर आँख के जल से धुली है
तुम्हारे जिस्म को छूकर चली है
हवा, जिससे कि महकी यह गली है
तुम्हारा रूप जो देखा तो मन में
मची, उस रोज से ही खलबली है
तुम्हारे बिन जिये तो क्या जिये हम
उठाले मौत, जो ज्यादा भली है
बुझायी प्यास कब उसने किसी की
वो खारे नीर वाली बावली है
रहा बाकी न कोई दाग शक का
ये चादर आँख के जल से धुली है
000
दिल की आग बुझाने आये
वो अपनत्व दिखाने आये
जैसे देने ताने आये
वे आँधी का झोंका बनकर
दिल की आग बुझाने आये
जब अंतिम साँसें गिनता था
मेरा मन बहलाने आये
अग्निपरीक्षा लेने वाले
लेकर फूल सुहाने आये
इक पल, चाँद दिखा झुरमुट में
हमको याद जमाने आये
000
प्यार पूजा है, प्यार दौलत है
मेरे दिल पर तेरी हुकूमत है
तेरी हस्ती मेरी बदौलत है
पहले ठोकर दी, अब उठाते हो
तुमको शायद मेरी जरूरत है
काम, सय्याद अब दिखायेगा
उड़ने की, दी तुम्हें इजाजत है
जंग, उनके खिलाफ जारी है
जिनसे, हमको बहुत मुहब्बत है
इसने झेले हैं जलजले कितने
देश की, सांस्कृतिक इमारत है
आप ‘आचार्य’, गर समझ पाते
प्यार पूजा है, प्यार दौलत है
000
प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है
व्यर्थ शंका न पालकर रखिये
अपना जज्बा सम्हालकर रखिये
प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है
कुछ भी, खट्टा न डालकर रखिये
काँच जैसा, ये टूट सकता है
दिल, न ज्यादा उछालकर रखिये
शोले, चिन्गारियों से बनते हैं
छोटी बातों को टालकर रखिये
मेरा दिल, ले तो जा रहे हो पर
ठीक से देख-भाल कर रखिये
लग न जाये नजर जमाने की
थोड़ा, घंूघट भी डालकर रखिये
000
जाँ निसारी का हुनर है आशिकी
मौत ने, अहसान हम पर ये किया
उसने मेरा कत्ल, किश्तों में किया
हमको, धोखे के सिवा कब, क्या मिला
बात पर तेरी, यकीं हमने किया
नोंचकर, चट्टान का मुँह, आए हैं
जंग का ऐलान, यूँ हमने किया
वो, भिखारी या फरिश्ता कौन था
उसको दुतकारा, बुरा तुमने किया
जाँ निसारी का हुनर है आशिकी
जलकर, परवाने ने पुख्ता ये किया
पाँव फिसला, गोद में आकर गिरे
तुमने ये अहसान अनजाने किया
000
बोझ ज्यों सिर से उतारा हमने
वक्त, ऐसा भी गुजारा हमने
बोझ, ज्यों सिर से उतारा हमने
जिसको फेंका उतार, नजरों से
उसको देखा न दुबारा हमने
अपनी इच्छाओं के हैं कातिल हम
तेरी खातिर, उन्हें मारा हमने
उसके चेहरे पे, देख मायूसी
दाँव जीता हुआ, हारा हमने
तुमने, इक बार भी नहीं देखा
बारहा, तुमको पुकारा हमने
हम तो, फूलों से बिछ गये होते
तेरा, पाया न इशारा हमने
000
व्यर्थ मोती न लुटाया कीजे
व्यर्थ मोती न लुटाया कीजे
कौन है हंस, यह पता कीजे
आप पूनम हैं, लोग कहते हैं
मेरे दिल में भी उजाला कीजे
तुम जो आते हो, फूल खिलते हैं
इनको, हर रोज हँसाया कीजे
याद के हैं, यहाँ पले जुगनू
रोशनी से, न डराया कीजे
आपके बिन, अगर जिया तो क्या
मेरे जीने की, मत दुआ कीजे
000
उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो
जुर्म है मंजूर मुझको आशिकाना दोस्तो
उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो
छोड़ना मत, तुम मुहब्बत में वफा की राह को
चाहे, दुनिया का मिले, कोई खजाना दोस्तो
गहरी, अमृत की लबालब झील-सी आँखें हैं वो
आशिकी की आग, उनमें है बुझाना दोस्तो
कौन बच पाया है, उन कातिल निगाहों से भला
कब गया है, हुस्न का खाली निशाना दोस्तो
जान देने को भी, मैं आ जाऊँगा आवाज पर
वार मुझ पर वो करें यदि शायराना दोस्तो
जश्न, रूमानी गजल के, हों हमारी मौत पर
चाहता हूँ, मौत का जलसा मनाना दोस्तो
तुम जहाँ चाहो, वहाँ महबूब को आना पड़े
पर इबादत की तरह उसको बुलाना दोस्तो
000
रात को आफ़ताब मिल जाये
काश, तेरा शबाब मिल जाये
रात को, आफ़ताब मिल जाये
चूम लो, होंठ से जो खत मेरा
मुझको, तेरा जवाब मिल जाये
गमजदा हो न कोई दुनियाँ में
है क्या मुमकिन जनाब, मिल जाये
कोई बिरले, नसीब वाले हैं
जिनको, मन का गुलाब मिल जाये
तिश्नगी का मजा, तभी है जब
होंठ वाली शराब, मिल जाये
000
कुछ चेहरे, कुछ लोग न भूले
पत्रा, पाती, जोग न भूले
मनवांछित संयोग न भूले
तुम्हें रिझाने, तुमको पाने
कितने किये प्रयोग, न भूले
अग्नि-साक्ष्य से, अग्निदाह तक
हम, सुयोग, दुर्योग न भूले
कठिन समय में, कदम मिलाकर
किये गये उद्योग न भूले
गंध, रूप, रस, दरश, परस के
सरस आचमन, भोग न भूले
यूँ तो सुध-बुध नहीं स्वयं की
कुछ चेहरे, कुछ लोग न भूले
000
मधुमास के दिन आ गये
मद भरे, मधुमास के दिन आ गये
मोद के, उल्लास के दिन आ गये
बेलियों से, केलि करते हैं विटप
रेशमी भुजपाश के दिन आ गये
हैं प्रफुल्लित, आम, सेमल, छेवले
झूमते गुलवास के दिन आ गये
व्यंग्य की चलने लगीं पिचकारियाँ
दिल्लगी, परिहास के दिन आ गये
हो गया है, फागुनी वातावरण
रूपगंधा प्यास के दिन आ गये
पाँव, धरती पर, उमंगों के नहीं
नापने आकाश के दिन आ गये
कसमसाते यौवनांगों में, किसी
अनछुये अहसास के दिन आ गये
है यहाँ पतझर गमों का, फिर खुशी
ये, इसी विश्वास के दिन आ गये
000
प्रेम, रिमझिम जुलाई जैसा है
दूध में, वह खटाई जैसा है
दुष्ट, निर्मम कसाई जैसा है
राम मुँह में, बगल में चाकू है
हिन्द के चीन भाई जैसा है
क्रोध उद्दंड जून के जैसा
प्रेम, रिमझिम जुलाई जैसा है
कोई शिकवा-गिला करूँ कैसे
उसका चेहरा, सफाई जैसा है
लगता नमकीन, रूठ जाने पर
हँसना, बस रसमलाई जैसा है
000
सिसकियाँ समझाएँगी
इस बिदाई की व्यथा को सिसकियाँ समझाएँगी
सबकी आँखों में घिरी ये बदलियाँ समझाएँगी
तुम, विरह की वेदना को, जानना चाहो अगर
रेत पर व्याकुल तड़पती, मछलियाँ समझाएँगी
काफिला होगा बहारों का, तुम्हारे साथ में
तब तुम्हारी शोहरत को, तितलियाँ समझाएँगी
हम सुमित्रों की दुआएँ, साथ में होंगी सदा
महफिलों में गूंजती, स्वर लहरियाँ समझाएँगी
अंजुमन में, चंद चेहरे याद आएँगे सदा
चाहने वालों से खाली, कुर्सियाँ समझाएँगी
जब भी वापस आओगे, पथ पर बिछे होंगे नयन
राह तकती आपकी, ये खिड़कियाँ समझाएँगी
000
दाग दामन में ऐसा लगाकर गये
मेरा दिल, इस तरह वो दुखाकर गये
मेरे दुश्मन के सँग, मुस्कुराकर गये
आशियाना मेरा, फूंक जिनने दिया
वो, नये घर का नक्शा, दिखाकर गये
याद मुझको नहीं, अपने घर का पता
वो, खुदा का ठिकाना, बताकर गये
साफ करना जिसे, चाहता मैं नहीं
दाग दामन में ऐसा लगाकर गये
जीते जी, जो अछूतों के जैसे रहे
राख, गंगा में उनकी, बहाकर गये
उनके बलिदान पर, गर्व करता वतन
राष्ट्र चरणों पर, जो सिर चढ़ाकर गये
000
मधुछन्द नहीं भूला
अब तक, तेरे तन की मादक गन्ध नहीं भूला
हमने, जो थे किये, सरस अनुबन्ध, नहीं भूला
जीवन भर का साथ निभाने के सारे वादे
और अटल रहने वाली सौगन्ध नहीं भूला
पूजा-वन्दन जैसे, जिनमें पावन भाव रहे
तेरे अधरों से फूटे, मधुछन्द नहीं भूला
जिनमें, द्वैतभाव के सारे अहम् तिरोहित थे
उन अद्वैत क्षणों का परमानन्द नहीं भूला
अब, जब तेरे बिना स्वयं की, मुझको खबर नहीं
तब भी, तेरे रेशम-से भुजबन्ध, नहीं भूला
000
यज्ञ-फल तो आप हैं
हर जगह चर्चाओं में बस आजकल तो आप हैं
गुनगुना जिसको रहे सब, वह ग़ज़ल तो आप हैं
प्रेमसागर, सब पुराणों में सरस वह ग्रन्थ है
मैं प्रवाचक किन्तु चंदन की रहल तो आप हैं
हम सरीखे मिटने वाले, होंगे पत्थर और भी
जिनके काँधों पर तने, कंचन महल तो आप हैं
आपकी चंचल अदाओं की बिसातें जादुई
हारते जिनमें सभी, लेकिन सफल तो आप हैं
चाहते थे और भी, पर भाग्य से हमको मिला
जिन्दगी की साधना का, यज्ञ-फल तो आप हैं
000
आपके बिन खुशी नहीं भाती
कोई सूरत मुझे नहीं भाती
आपके बिन खुशी नहीं भाती
जिसमें, तेरा न जिक्र आता हो
शायरी वह, मुझे नहीं भाती
एक निर्मल हँसी का झरना तू
तुझसे बढ़कर नदी नहीं भाती
आपको जब बसा लिया दिल में
कोई तस्वीर अब नहीं भाती
आज मैं हूँ जहाँ, वहाँ मुझको
दोस्ती-दुश्मनी नहीं भाती
प्रेम का, चढ़ गया नशा मुझ पर
इसलिए मयकशी नहीं भाती
000
आज, जीवन मिला दुबारा है
साथ जबसे मिला तुम्हारा है
नाम, शोहरत पे अब हमारा है
जन्मतिथि याद थी नहीं अपनी
आज, जीवन मिला दुबारा है
नाम, सबकी जुबान पर केवल
हर तरफ, आपका-हमारा है
आज महफिल में मुझको लोगों ने
आपके नाम से पुकारा है
तेरे सजदे में सारा आलम है
कितना रंगीन ये नजारा है
तेरे बिन, किस तरह अकेले में
वक्त हमने कठिन गुजारा है
तेरे बिन, एक पल रहूँ जिन्दा
ऐसा जीना, नहीं गवारा है
000
बढ़ें अपन तूफानों में
आग लगे अरमानों में
खलल पड़े ईमानों में
चूम शमा को, मरने की
होड़ लगी परवानों में
मेरा नाम करो शामिल
तुम अपने दीवानों में
रूप का सागर मत बाँटो
अलग-अलग पैमानों में
कभी अजीज रहे उनके
अब, हम हैं अनजानों में
मंदिर-मस्जिद में, न मिली
शांति मिली, मयख़ानों में
तुम यदि साथ निभाओ तो
बढं़े अपन, तूफानों में
000
हम फकीरों की दौलत महज प्रेम है
तो अधरों से जब आचमन कर लिया
देह का, हमने सुरभित चमन कर लिया
तेरे यौवन की बेदी, दहकती मिली
पुण्यफल लेने, मैंने हवन कर लिया
इश्क आगाज था, तृप्ति अंजाम है
एक संसार का, नव सृजन कर लिया
हुस्न, छनकर, नक़ाबों से आता रहा
लाख पर्दो का, तुमने जतन कर लिया
मेरी आराध्य, आराधना तुम ही हो
मान ईश्वर, तुम्हें ही नमन कर लिया
हम फकीरों की दौलत, महज प्रेम है
इस जहाँ में, यही प्राप्त धन कर लिया
000
स्वार्थ, जो प्यार के दरमियाँ आ गये
कौन से मोड़ पर हम यहाँ आ गये
भूलकर, अपने घर का पता आ गये
इक तुम्हारे लिए हमने क्या ना किया
छोड़कर हम तो सारा जहाँ आ गये
मेरे गीतों में, जीवन की सच्चाई है
दर्द शब्दों में ढलकर, यहाँ आ गये
मैं जो कह न सका, आँसुओं ने कहा
दिल के जज्बात के, तर्जुमा आ गये
बात की थी जमाने की, तुम रो पड़े
आपके क्या कोई बाकया आ गये
अब मिलाने से भी, दिल मिलेंगे नहीं
स्वार्थ, जो प्यार के दरमियाँ आ गये
000
हाथ, विश्वास से बढ़ा देना
दूर रहने की मत सजा देना
चाहे मरने की तुम दुआ देना
बेरुखी का अमिय न लूँगा मैं
प्यार से, विष भले पिला देना
याद के हैं यहाँ दबे शोले
फिर से चाहत की मत हवा देना
तुमको जब भी मेरी जरूरत हो
हाथ विश्वास से बढ़ा देना
आरजू एक है, मरूँ जब भी
शायरी का कफन उढ़ा देना
रुग्ण ‘आचार्य’ है व्यवस्था यह
मजहबी मत इसे हवा देना
000
मयकदे को भुलाये बैठे हैं
दिल में, तुमको बसाये बैठे हैं
हम तो, खुद को भुलाये बैठे हैं
तेरे अधरों के जाम पीने को
मयकदे को भुलाये बैठे हैं
लोग ऐलान इश्क का करते
आरजू, हम छिपाये बैठे हैं
हुस्न, छन-छन के आ रहा उनका
लाख पर्दे लगाये बैठे हैं
तेरी महफिल में, किस तरह आयें
दाग अपने छिपाये बैठे हैं
प्राण मेरे, यहाँ निकलते हैं
आप, मेंहदी लगाये बैठे हैं
काश, तुमको कभी तरह आये
आस, हम तो लगाये बैठे हैं
000
कितनी अनमोल स्वर्णिम घड़ी हो गई
रूप सम्पन्न, वो फुलझड़ी हो गई
आज, चाहत भी उसकी, बड़ी हो गई
आपसे मेरी पहली मुलाकात ही
कितनी अनमोल, स्वर्णिम घड़ी हो गई
प्रीति, विश्वास के संग में जब मिली
कारगर, जिन्दगी की, जड़ी हो गई
उम्रभर की सजा ये सुहानी लगी
तेरी चुनरी ही जब हथकड़ी हो गई
मात खाने लगी मुश्किलें, उससे अब
अपने पैरों पै, विधवा खड़ी हो गई
000
जानते हैं हम शराफत आपकी
जानते हैं हम, शराफत आपकी
आँख करती हैं शरारत, आपकी
कत्ल हो जाता, लहू बहता नहीं
ऐसी कातिल है, नजाकत आपकी
फूल खिलते हैं चमन के, बाद में
पहले, लेते हैं इजाजत, आपकी
कितने घर, बर्बाद तुमने कर दिये
जानते हैं, हम भी ताकत आपकी
कब से, ये पलकें बिछी हैं राह में
जाने कब होगी, इनायत आपकी
चैन से जीने नहीं देती मुझे
बेवजह की, यह अदावत आपकी
गम में खुश रहकर, बसर करने लगे
शुक्रिया, यह है इनायत आपकी
000
जब भी विश्वास पास आते हैं
आप जब मेरे पास आते हैं
जैसे मय के गिलास आते हैं
कितनी बाधाएँ पार की हमने
याद, सारे प्रयास आते हैं
सहने पड़ते हैं, पतझरों के दिन
तब, बहारों के मास आते हैं
नींद के साथ, रात में मुझको
स्वप्न तेरे ही खास आते हैं
छोड़ मन, आप सिर्फ तन लेकर
कितने चिंतित-उदास आते हैं
गुफ्तगू उनसे हो भला कैसे
छोड़ बाहर, मिठास आते हैं
सार्थक तो मिलन तभी होता
जब भी, विश्वास पास आते हैं
000
इश्क आँखों से ही बयाँ कर दे
सच का इजहार इक दफा कर दे
मेरा आसान रास्ता कर दे
व्यक्त शब्दों में कर न पाये तो
इश्क, आँखों से ही बयाँ कर दे
सिर्फ तेरे बिना, ये सूना है
घर में तब्दील ये मकाँ कर दे
चीर दे तीरगी गमों की यह
दिल की, रोशन, बुझी शमाँ कर दे
ताजगी, जिन्दगी में आ जाये
अपनी साँसों से, तर हवा कर दे
हर तरफ खुश्बु ए मुहब्बत हो
मेरे महबूब यूँ फिजाँ कर दे
आपसी प्यार, भाईचारा हो
सबकी तासीर यूँ खुदा कर दे
000
तुमने बुझाई प्यास तड़पते हुए दिल की
ताजा है अभी याद मचलते हुए दिल की
जब की थी तुमने बात, चहकते हुए, दिल की
छोटी-सी मुलाकात वो, अमराई के तले
तुमने बुझाई प्यास, तड़पते हुए दिल की
बुनियाद जाने क्यों तेरे विश्वास की हिली
काँपी है कोई ईंट दरकते हुए दिल की
उठती है एक टीस-सी, सीने में आज फिर
चुभती है जो किरांच चटकते हुए दिल की
फैली है फिजाओं में, तेरी साँस की गर्मी
निकली हो जैसे आह, सुलगते हुए दिल की
ये कौन है, मौसम को जो पागल बना रहा
खुशबू कहाँ से आई, गमकते हुए, दिल की
जज़्बात आशिकी के, छिपाया न कीजिए
दबती नहीं पदचाप, धड़कते हुए दिल की
000
चर्चित तभी से मेरा किरदार हो गया है
ठनगन किये, मगर अब श्रंृगार हो गया है
वातावरण प्रणय का, तैयार हो गया है
दर्पण निहारते हैं, आँचल सँवारते हैं
शायद उन्हें भी हमसे अब प्यार हो गया है
रूठो न जानेमन अब, आओ चली भी आओ
यह इन्तजार लम्बा, इस बार हो गया है
इल्जाम तुमने मुझ पर जब से लगाए झूठे
चर्चित तभी से मेरा, किरदार हो गया है
रोका है सिसकियों को, हमने न की शिकायत
पर अश्रु को कहें क्या, गद्दार हो गया है
यूँ ही दिखा-दिखाकर, अँगड़ाइयाँ न लीजे
वैसे ही जीना मेरा, दुश्वार हो गया है
ये मिन्नतें न हमसे अब बार-बार होंगी
दिल चोट सहते-सहते, खुद्दार हो गया है
000
आँखों से संवाद किया है
आँखों से, संवाद किया है
अजब हुनर ईजाद किया है
मिलने पर मुँह फेर लिया था
जाने फिर क्यों याद किया है
मेरा घर उजाड़कर उसने
अपना घर आबाद किया है
अपना पता-ठिकाना भूला
यूँ मुझको बर्बाद किया है
पंख कतर, जालिम ने मुझको
उड़ने को आजाद किया है
यौवन के गुरूर ने उसको
पत्थरदिल जल्लाद किया है
असर नहीं अब आघातों का
मैंने दिल फौलाद किया है
000
मौत कितनी खूबसूरत हो गई
आपको मुझसे मुहब्बत हो गई
आज मेरी कितनी इज्जत हो गई
भाग्यफल मिलके ही रहता है सदा
तुम मिले, सच्ची कहावत हो गई
नाम तेरा ही, जपा करता हूँ अब
बस यही मेरी इबादत हो गई
याद में तेरी ही, रातें कट रहीं
जागने की, अब तो आदत हो गई
बात उनसे, अपने दिल की कह गया
इसलिए मुझसे अदावत हो गई
अब तो कतराकर निकल जाते हैं वो
ख़त्म अब उनकी जरूरत हो गई
आखि़री हिचकी तेरे पहलू में ली
मौत कितनी खूबसूरत हो गई
000
जिन्दगी एक बही खाता है
जब भी, मस्ती का दौर आता है
एक सैलाब, साथ लाता है
डूब जाते हैं तैरने वाले
कोई बिरला ही पार पाता है
जिन्दगी एक द्यूत-क्रीड़ा है
बुद्धिबल ही हमें जिताता है
जिसमें सुख-दुख सभी लिखे जाते
जिन्दगी, एक बही खाता है
रूढ़ियों से विकास रुकता है
बासा अखबार बाँचा जाता है
दूसरों के यहाँ धुआँ करने
मूढ़, अपना ही घर जलाता है
झेल, विपदाओं को, बढ़े चलना
आग में, स्वर्ण जाँचा जाता है
प्यार धागा है एक, रेशम का
खींचने से, जो टूट जाता है
000
मत-मतान्तर के शोले
तुम हो सभी जुबानों पर
घर-बाहर दूकानों पर
इश्क तुम्हारा पहुँच गया
दीवालों के कानों पर
कही-सुनी आपस की अब
है अश्लील बयानों पर
मत-मतान्तर के शोले
आने लगे मकानों पर
गिरी बजट की गाज पुनः
श्रमिक, गरीब, किसानों पर
कब्जा हुआ, लठैतों का
कोर्ट, कचहरी, थानों पर
समझाइश का असर नहीं
हुआ कभी, हैवानों पर
000
है कबीरों की अमर वंशावली
नफरतों के, तेज जब खंजर हुए
जिस्म अपने ही लहू से तर हुए
है कबीरों की अमर वंशावली
ख्यात जो, पीड़ाओं को गाकर हुए
जिस महल पर, आज तुम इतरा रहे
दफ्न, उसकी नींव में बेघर हुए
मंजिलों ने ही किया गुमराह है
दूर, हम तो लक्ष्य को पाकर हुए
पर्वतों ने सिर झुकाया, प्यार को
फूल से कोमल, जहाँ पत्थर हुए
शक्तिशाली, काँपते देखे महल
झोपड़े, जब-जब, खड़े तनकर हुए
000
चोर घर को रखाने लगे
जब से बेटे कमाने लगे
बाप-माँ को, दबाने लगे
गालियों की वे छैनी लिए
मूर्ति मेरी, बनाने लगे
चोर-डाकू गये जेल जो
लाभ फ्रीडम का पाने लगे
ऐसा आतंक अपराध का
शीश मुंसिफ झुकाने लगे
बाप, खाते रहे उनके घी
उँगलियाँ वे सुँघाने लगे
वक़्त की बेबसी देखिये
चोर, घर को रखाने लगे
000
जिसके भीतर जो भरा था, उसने आखिर वो दिया
दुश्मनों ने राष्ट्र में जब, बीज विष का बो दिया
स्वार्थों ने देश अपना, बाँट टुकड़ों में दिया
देश को आजाद करवाने, गवाँ दी जान, पर
जो गुलामी का, लगा था दाग, वह तो धो दिया
धन कमाया उनने जाकर के विदेशों में, मगर
अपनी संस्कृति का खजाना, कीमती था, खो दिया
गालियाँ गुण्डे ने दीं, बूढ़ा दुआ देता रहा
जिसके भीतर जो भरा था, उसने आखिर वो दिया
दिल, दुखा उद्दण्ड बेटे ने दिया था, बाप का
जब हुआ अहसास, चरणों पर गिरा औ’ रो दिया
यह नहीं कि शत्रु की ताकत का अन्दाजा न था
आन की खातिर ही, तूफाँ से लड़ा था, वो दिया
000
कभी परायी आस न कर
किस्मत पर, विश्वास न कर
तू, श्रम का उपहास न कर
साथी, स्वयं आत्मबल है
कभी, परायी आस न कर
संघर्षों से भाग नहीं
आडम्बर, सन्यास न कर
श्रद्धा-भक्ति, समर्पण बिन
झूठा व्रत-उपवास न कर
चातक-व्रत का पालन कर
परकीयक सहवास न कर
दुखती रग छूने वाला
परपीड़क परिहास न कर
बोधगम्य कविता लिख तू
कठिन, शब्द विन्यास न कर
000
दृश्य सब उनकी निगाहों में मिले
देखने जो कत्लगाहों में मिले
दृश्य सब, उनकी निगाहों में मिले
खून के प्यासे हैं मेरे, लोग वे
सुख जिन्हें, मेरी पनाहों में मिले
प्राण से भी जो हमें प्यारे रहे
झूलते, दुश्मन की बाँहों में मिले
कातिलों के नाम जब देखे गये
वे, हमारे खैरख्वाहों में मिले
जुर्म मुझ पर थोपने को कोर्ट में
दोस्त मेरे सब, गवाहों में मिले
थे पहरूये जो, अमन-कानून के
वे सभी, शामिल गुनाहों में मिले
000
साँप, औकात पर अपनी आने लगे
जख्म हैं ये नये, पर पुराने लगे
आप, फिर क्यों मुझे आजमाने लगे
मेरी आँखों को, तुम पढ़ चुके बारहा
पर, समझने में, तुमको जमाने लगे
हुस्न की, न नुमाइश करो इस तरह
देखकर, कोई मुँह न छुपाने लगे
आज कतराकर मुझसे निकलते हैं वो
मेरे कारण जो शोहरत कमाने लगे
वो उगलने लगे हैं जहर आजकल
साँप, औकात पर अपनी आने लगे
हमने, होकर विवश खोल दी जो जुबाँ
उनको दिन में ही तारे दिखाने लगे
000
मिलेंगे मुस्कुराते देवता बेजान पत्थर में
उजाले डूबते हैं जब, अँधेरे के समंदर में
तो किरणें फूटती हैं आस की, अपने ही अंदर में
जहाँ सींचा गया, संवेदना का, प्यार से पानी
फसल विश्वास की, होती सुविकसित भूमि बंजर में
जहाँ कूकी नहीं कोकिल कभी, अमराई में मन की
झपटते वासना के गिद्ध, दैहिक अस्थिपंजर में
दिलों की सल्तनत को, जीत सकते हो मुहब्बत से
कि ताकत प्रेम के जैसी नहीं होती है खंजर में
तराशो, छैनियाँ तालीम की लेकर सजगता से
मिलेंगे, मुस्कुराते देवता, बेजान पत्थर में
000
सेमल, पलाश फूले
मधुमास का, गुलों से श्रंृगार हो गया है
अब आशिकी का आलम, तैयार हो गया है
ये वृक्ष औ’ लताएँ आपस में गुँथ गये हैं
हर प्राण में, प्रणय का संचार हो गया है
सेमल, पलाश फूले, बौराए आम्रवन भी
कोकिल की कूक, अलि का गुंजार हो गया है
अंगूर से अधर ये, केशर कपोल मेरे
कश्मीर-सा बदन यह गुलजार हो गया है
ना जाने कैसा जादू तुमने किया है प्रियतम
पत्थर हृदय हमारा, सुकुमार हो गया है
स्वर लहरियाँ गुँजा दो, तन के सितार पर अब
बजने विकल नसों का हर तार हो गया है
000
साथ, अहसास लेकर सभी आ गये
छोड़कर, हम पुरानी सदी आ गये
साथ, अहसास लेकर सभी आ गये
चाह तृष्णा की, हमको कहाँ ले चली
छोड़कर खेत, जंगल नदी आ गये
बीते लम्हों की चर्चा, न अब कीजिए
जीने को हम, नयी जिन्दगी, आ गये
आप, शीतल हवाओं के झोंकों सदृश
देने, फूलों को फिर ताजगी आ गये
हम, अँधेरों में जीने के अभ्यस्त हैं
तेरी यादों की, ले रोशनी आ गये
आपको, भीड़ में ही घिरा देखकर
दूर से, करके हम बन्दगी आ गये
000
मैं सारे मौसम लिखता हूँ
मैं, सारे मौसम लिखता हूँ
कुछ खुशियाँ, कुछ गम लिखता हूँ
राग-विहाग लिखा, बेवश हो
मन से, स्वर पंचम लिखता हूँ
लिखा सदा, संघर्ष दीप का
और हारता तम, लिखता हूँ
यशोगान सीमा रक्षक के
दुश्मन के मातम लिखता हूँ
गर्म, लहू से, राष्ट्रभक्ति के
लहराते परचम लिखता हूँ
शोषणकारी व्यवस्थाओं के
डटकर जुल्म-सितम लिखता हूँ
झूठ, कपट, छल, बेईमानी
बहुत अधिक है, कम लिखता हूँ
जुआ, शराब, कामचोरी को
आत्मघात दिग्भ्रम लिखता हूँ
आहत के जख्मों पर हरदम
करुणा के मरहम लिखता हूँ
000
देखे हैं मैंने कितने सागर खंगालकर
मुझको न आजमाइये, सिक्के उछालकर
रखिये, गुरूर अपने धन का, सम्हालकर
फूलों के हार लाये, यूँ तो सभी यहाँ
लौटे न कोई, दिल के काँटे निकालकर
मोती न मेरे मन का, अब तक मुझे मिला
देखे हैं मैंने, कितने सागर खंगालकर
उसको ही काटने को, तत्पर है नासमझ
झूले थे तूने झूले जिस बट पे डालकर
सुलझाने को समस्या भेजा गया जिन्हें
लौटे न आज तक वो उत्तर निकालकर
छीनेगी, चैन दिन का, रातों की नींद भी
दिल में, न दुश्मनी को रखियेगा पालकर
दाता, मुझे जो खाली लौटाएगा अगर
मेरा न कुछ घटेगा, अपना ख़्यालकर
000
दुश्मनी वो भँजाते रहे
अपने आँसू छिपाते रहे
किन्तु जग को हँसाते रहे
उनके जश्नों में की न खलल
हिचकियों को दबाते रहे
रास्ते उनके रोशन किये
अपना दिल हम जलाते रहे
गैर की बाँह में झूलकर
दुश्मनी, वो भँजाते रहे
व्यंग्य का, उनने छिड़का नमक
जख्म, जब हम दिखाते रहे
कौल पर, जो न कायम रहे
वे, हमें आजमाते रहे
000
सुखमय साकेत गँवाया
वह पावन परिवेश गँवाया
गरिमामंडित देश गँवाया
सूट, टोप, टाई अपनाकर
भारतवाला भेष गँवाया
‘ग’ से गधा सीखकर हमने
शुभ संकेत ‘गणेश’ गँवाया
पश्चिम के सब दुर्गुण सीखे
सद्गुण का संदेश गँवाया
होड़ राज सिंहासन की है
पर, सुखमय साकेत गँवाया
शुभ संदेश भेज, गिद्धों को
शांति कबूतर श्वेत, गँवाया
000
अब स्वर्ग बाहुओं में साकार हो गया
जबसे, सजन तुम्हारा दीदार हो गया है
तुम बिन हमारा जीना दुश्वार हो गया है
मन पर नहीं है काबू, वश में नहीं है यौवन
उद्दाम, धमनियों का अब ज्वार हो गया है
सावन के मेघ बनकर आओ बरस भी जाओ
अब अंग-अंग दहका अंगार हो गया
अपनी भुजाओं में भर, हमको उठा लो प्रियतम
यौवन हमें हमारा, अब भार हो गया है
आलिंगनों के बंधन, ढीले न होने देना
अब, स्वर्ग बाहुओं में, साकार हो गया है
000
टूटे प्याले व खाली रकाबी मिली
हमको, तासीर तो इन्क्लाबी मिली
आज तक न मगर कामयाबी मिली
मयकदे में, कभी प्यास बुझ न सकी
टूटे प्याले व खाली रकाबी मिली
पार कितने अँधेरे किये, तब कहीं
यह सुनहली सुबह आफताबी मिली
चाहतों से भरा दिल, हमें भी मिला
सिर्फ तुमको न सूरत गुलाबी मिली
देना सीखा नहीं, किन्तु लेते हैं दिल
इन हसीनों को, बस यह खराबी मिली
उनने चाहा, इशारों पे नाचे गज़ल़
जिनको रूमानियत औ नवाबी मिली
000
लौटकर फिर खुशी नहीं आयी
याद जब आपकी नहीं आयी
आज तक वो घड़ी नहीं आयी
रूठकर जबसे तुम गये हमसे
लौटकर, फिर खुशी नहीं आयी
तो, दुनिया में चाँद सूरज हैं
पर यहाँ रोशनी नहीं आयी
आशियाँ, फिर नया बसाने की
बात मन में, कभी नहीं आयी
जिन्दगी रुठकर गई जबसे
मौत भी देखने नहीं आयी
मेरी गजलों में, बेवफाई की
बात तेरी, कभी नहीं आयी
000
वहम का बोझ पलकों पर
अँधेरी रात को, पूनम बनाकर मैंने रक्खा है
तेरी खातिर, इन आँखों को जलाकर मैंने रक्खा है
बड़ी बेसब्र है यह मौत, जो लेने मुझे आयी
तेरे दीदार की ख़ातिर, बिठाकर मैंने रक्खा है
जलाकर राख की, जिसने मेरे अरमान की बस्ती
उसी शम्मा को, बुझने से बचाकर मैंने रक्खा है
मेरे जख्मों को, राहत अब इन्हीं चोटों से मिलती है
गमों को, अब दवा जैसा बनाकर मैंने रक्खा है
मेरी बर्बादियों से, तुम भी अपने जी को बहला लो
तमाशा, जिन्दगी को, खुद बनाकर मैंने रक्खा है
जो मेरे खून का प्यासा, लिए खंजर भटकता था
उसी कातिल को, गर्दिश में छुपाकर मैंने रक्खा है
मेरे ख़्वाबों में आने की, हिमायत अब न करना तुम
वहम का बोझ, पलकों पर उठाकर मैंने रक्खा है
000
नाग फुफकारते आ रहे
रोटियाँ, श्रम की, जो खा रहे
वे, सताये यहाँ जा रहे
चाटुकारी में, जो हैं निपुण
मान-सम्मान वे पा रहे
चंद टुकड़ों में जो बिक गये
शत्रुओं के सुयश, गा रहे
दीप, सद्भाव के, बुझ गये
दुश्मनी के तिमिर छा रहे
अब धुआँ, धूल, दुर्गन्ध के
नाग, फुफकारते आ रहे
सर्प, डसते रहे हैं मगर
पालकर वे रखे जा रहे
000
ये गटक गये, वे सटक गये
नेता, सत्पथ से भटक गये
सत्ता पर, सारे घटक गये
जिनने, गरीब को चूसा है
उन महलों पर, रँग चटक गये
थे आजादी के दीवाने
हँसकर, फाँसी पर लटक गये
‘अरबों’ दिल्ली से चले मगर
वे, कहाँ बीच में अटक गये
है चोर-सिपाही मौसेरे
ये गटक गये, वे सटक गये
000
प्रार्थनाएँ मेमनों की
धार पैनी कर, फनों की
है जरूरत बम-गनों की
लाश, आतंकी बिछाते
रोज, अपने परिजनों की
हो रहीं लम्बी जुबानें
मुँहलगे इन ढक्कनों की
शत्रु, सीमा पर जमा है
धौंस मत सह, दुश्मनों की
चीख देती है सुनाई हर
तरफ, आहत वनों की
अब तो, कर दो गाँठ ढीली
रण के संयम, बन्धनों की
भेड़िये, सुनते नहीं हैं
प्रार्थनाएँ मेमनों की
खंजर आये, चले गये
रहबर आये, चले गये
क्यूँ कर आये, चले गये
दिया न कुछ, आश्वासन के
लश्कर आये, चले गये
मैं, प्यासा का प्यासा हूँ
सागर आये, चले गये
दिल का शीशा तोड़ दिया
पत्थर आये, चले गये
आँखों में बीते मंजर
अक्सर आये, चले गये
मरा नहीं सद्भाव, भले
खंजर आये, चले गये
000
होड़ लगी भगवानों में
खोज उन्हें, इन्सानों में
प्रभु न मिले, वीरानों में
प्रभु असीम, हम बाँट रहे
मजहब के चौखानांे में
जिन्हें न घर में शान्ति मिली
मिले कहाँ मयखानों में
दफ्न, श्रमिक के सपने हैं
महलों के तहखानों में
खिले, फूल जो काँटों में
मुरझाते, गुलदानों में
‘असली’ सिद्ध यहाँ करने
होड़ लगी भगवानों में
000
उसके भीतर कबीर बैठा है
बेचकर वह जमीर बैठा है
आज बनकर अमीर बैठा है
उसके पौरुष को, पी गई मदिरा
रुग्ण, जर्जर शरीर बैठा है
कितने आगे, निकल गयी दुनिया
पीटता तू लकीर, बैठा है
गाय तो कत्लगाह में पहुंची
लट्ठ लेकर अहीर बैठा है
कहता सच्चाई वह निडरता से
उसके भीतर कबीर बैठा है
जाने किस वेश में, फरिश्ता हो
कबसे, भूखा फकीर बैठा है
000
जिन्दगी के करीब होते हैं
आदमी जो, गरीब होते हैं
जिन्दगी के करीब, होते हैं
जो भी चाहा, वही मिला ‘जिनको’
ऐसे बिरले नसीब होते हैं
जिनको माँ की, नहीं मिली ममता
लोग वे, बदनसीब होते हैं
दिल नहीं, जिस्म चाहने वाले
ऐसे आशिक अजीब होते हैं
पीर जग की जिन्हें लगे अपनी
वे ही सच्चे अदीब होते हैं
जो भी, हटकर चले जमाने से
उनकी खातिर, सलीब होते हैं
000
कच्ची दीवाल भी उसकी फौलाद होगी
प्रीति की, सख्त घर में जो बुनियाद होगी
कच्ची दीवाल भी उसकी, फौलाद होगी
जो वहाँ, फूल खिलते हैं सद्भावना के
तो संस्कृति की, पौधों को, दी खाद होगी
जोड़ते हैं वे दौलत, कदाचार करके
उनकी कैसे, न बर्बाद औलाद होगी
काटकर मूक पशुओं को, जो खा रहे हैं
उनकी संतान भी, क्रूर जल्लाद होगी
लोग, अपने वतन पर जो कुर्बान होंगे
उनकी, इतिहास में गर्व से याद होगी
जान, असमय किसी की भी जाती नहीं है
मौत की तो, अटल एक मीयाद होगी
000
करना है यदि तरक्की
ईमान से जिया है, जो मुफलिसी के साथ
तकदीर ने दगा की, अक्सर उसी के साथ
जो पीठ पर हमेशा, खंजर रहे चुभाते
उनसे न पेश आये, हम दुश्मनी के साथ
जीना न सीख पाये, सद्भाव से कभी जो
भोगा तनाव उनने, रस्साकशी के साथ
अपना अहम भुलाकर, जिनने किया समर्पण
निर्झर हुए समंदर, बहकर नदी के साथ
सीमाओं पर डटे हैं, जो राष्ट्र के पहरुये
खतरों से खेलते हैं, हर पल खुशी के साथ
स्वर्णाक्षरों में उनका, इतिहास नाम लिखता
मरते हैं जो वतन पर, रणबाँकुरी के साथ
दीमक लगी किताबें, पाखंड की जला दो
करना है यदि तरक्की, आगत सदी के साथ
000
मयकदे जाने लगे
लौटकर मस्जिद से आशिक मयकदे जाने लगे
साकी तेरे दर पे सब तकदीर अजमाने लगे
उनकी आँखों ने, न जाने कौन सा जादू किया
जिनके आगे, बेअसर, ये मय के पैमाने लगे
उनके आते, अंजुमन में फिर बहारें आ गईं
झूमकर मस्ती में, सारे भंवरे मँडराने लगे
तुमने क्या ठुकरा दिया, दुश्मन जमाना हो गया
गैर की तो छोड़िये, अपने भी कतराने लगे
आज, बिल्ली और कुत्तों की, करें क्या बात हम
आदमी, रस्ता हमारा काटकर जाने लगे
जब, बिना पतवार के कश्ती भँवर में आ फँसी
ज़िन्दगी के सिन्धु में तूफाँ, कई आने लगे
000
वहाँ गरीबों की अस्मत लुटवायी जाती है
हिना पत्थरों पर, घंटों पिसवायी जाती है
तब उनके पाँवों में, लाली लायी जाती है
जिन्हें नहीं चाहत, अधरों से उन्हें पिलाते हैं
दिख-दिखा कर हमें, मद्य छलकायी जाती है
वे हैं ऊँचे महल, अमीरी पर इतराते हैं
वहीं गरीबों की अस्मत लुटवायी जाती है
यह भूखा, मुरझाया बचपन यँू ही छला गया
इसे, दिलासा की लोरी, सुनवायी जाती है
उस महफिल में जाना मत, आचार्य भूलकर तुम
खिल्ली, जहाँ, आशिकों की, उड़वायी जाती है
000
भेड़िये, हर तरफ आज आते नजर
मजहबी बाँध, हर धर्म की इक नहर
जलने से फिर भी बचते नहीं हैं शहर
जिस तरफ देखिये जंगली राज है
भेड़िये, हर तरफ, आज आते नजर
आज, इन्सानियत तोड़ने दम लगी
गाँव के भाईचारे को, लीलें शहर
माँ बचाये किसे वा किसे छोड़ दे
एक बेटा जले, दूजा खाये ज़हर
आग पर, राजनैतिक सिकें रोटियाँ
और बारूद के, बनते जाते हैं घर
राम-रहमान, भूखे यहाँ फिर रहे
रेवड़ियाँ बँट रहीं, धर्म के नाम पर
बंद, कटुता के छिद्रों को, पहले करो
चढ़ना तब, दोस्तो धर्म की नाव पर
000
मोम जैसा पिघल गया, पत्थर
मोम जैसा पिघल गया पत्थर
जैसा ढाला, ये ढल गया पत्थर
अन्न जब-जब फरेब का खाया
भूख में वह, निगल गया पत्थर
दोस्ती हो नमक व पानी सी
यार के सँग, उबल गया पत्थर
बोझ महलों का भी उठाया है
नींव में भी, कुचल गया पत्थर
मंदिरों-मस्जिदों में, जड़ने पर
मजहबों में, बदल गया पत्थर
हाथ में आदमी के, आया तो
आदमी पर ही, चल गया पत्थर
सिर झुके, आस्थाओं से जब-जब
देवता में बदल गया पत्थर
000
भाईचारे के, शीतल जो संदल रहें
इस धरा पर, सघन खूब जंगल रहें
तो न सूखा, अवर्षा, अमंगल रहें
अब न शोषण, अनाचार हो राष्ट्र में
शान्ति सम्पन्न, बीहड़ ये, चम्बल रहें
रोटियाँ, वस्त्र, घर होवें सबको सुलभ
ग्रीष्म में छाँव, ठंडी में कम्बल रहें
राष्ट्र हित में, समर्पित जो नेता रहें
तो, घिनौने न संसद के दंगल रहें
मजहबी ये मनोरोग, पनपें न, यदि
भाईचारे के, शीतल जो संदल रहें
000
मेमने, लेकर दुशाले जा रहे
दुश्मनी के हल निकाले जा रहे
मंत्रणा को, खड्ग-भाले जा रहे
दूर क्या होगी भला, धर्मान्धता
मजहबी, भेजे उजाले जा रहे
भेड़िये का आज फिर सम्मान है
मेमने, लेकर दुशाले जा रहे
इस तरह सदभावना फैला रहे
फिर गड़े मुर्दे निकाले जा रहे
लोक हितकारी बजट है, देखिये
हमसे, फिर छीने निवाले जा रहे
देश की छवि, स्वच्छ कैसे हो भला
सांसद, कीचड़ उछाले जा रहे
सरफरोशी के अमर इतिहास से
नाम वीरों के, निकाले जा रहे
000
औलिया, संत, पीर जैसा है
देखने में, फकीर जैसा है
बोलने में कबीर जैसा है
तंगहाली में कवि निराला-सा
ठाठ में, दानवीर जैसा है
क्रोध में, दूध-सा उफनता है
प्यार, स्वादिष्ट खीर जैसा है
उसके छूने से, फूल खिलते हैं
मंद, शीतल, समीर जैसा है
जाने किसकी तलाश है उसको
लापता राहगीर जैसा है
खैरियत सबकी चाहने वाला
औलिया, संत, पीर जैसा है
000
चूल्हे को उपवास कराया
जीते जी, प्यासा तड़पाया
मरने पर, सागर छलकाया
ले आशीष, मृतक के शव से
कागज पर ऊँठा लगवाया
समय लुटेरे ने यूँ लूटा
मिट्टी दे दी, स्वर्ण गलाया
बरगद-सा विश्वास, गाँव का
‘बोनसाई’ शहरों में पाया
कितनी आस्तिक हुई गरीबी
चूल्हे को, उपवास कराया
धन्यवाद खोटे सिवकों को
गुल्लक का मुँह बंद कराया
000
जब किसान आँसू बोता है
जब किसान आँसू बोता है
हर पौधा, शोला होता है
नचवाया जाता, कुटियों को
जश्न, महल में, जब होता है
हर चुनाव ने, इसको लूटा
मतदाता फिर भी सोता है
लोकतंत्र फल-फूल रहा है
संविधान, फिर क्यों रोता है
ग्रंथों से, मोती बटोरता
गहन, लगाता जो गोता है
ज्ञात नहीं, खुद का भविष्यफल
बना ज्योतिषी जो तोता है
मन का मैल छुटा ना पाया
गंगा में, तन को धोता है
000
भय का अजगर, हमें निगलने लगता है
जब, धमनी का खून, उबलने लगता है
गुस्से से, फौलाद पिघलने लगता है
शोषणकारी महल, काँपने लगते हैं
करवट, जब फुटपाथ बदलने लगता है
शंकाओं के, जहाँ सपोले पलते हैं
भय का अजगर, हमें निगलने लगता है
सुख-सुविधायें, टाँग खींचने लगती हैं
जब उसूल पर कोई चलने लगता है
राजनीति की राहें, हैं सब रपटीली
आदर्शों का पाँव फिसलने लगता है
सत्ता सुख, चख लेने वाला हर नेता
गिरगिट जैसे रंग बदलने लगता है
घर में जब बेटी जवान हो जाती है
चिंतित बाप नींद में चलने लगता है
Comments
Post a Comment