Here are some best Short Hindi Poems For Kids with rhymes for all classes Child for nursery to class 5, best hindi kavita with rhyming. हिंदी कविता बच्चों के लिए Download by Famous Poet Acharya Bhagvat Dubey.
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Poem on Gods in Hindi-भगवान पर कविताएँ
Poem on Gods in Hindi-भगवान पर कविताएँ
गौरी नन्दन
गौरी नन्दन आपको , बारम्बार प्रणाम
प्रथम पूज्य है आपका, सब देवों में नाम
सब देवों में नाम, बुद्धिबल के तुम दाता
एकदन्त गजवदन , गजानन ज्ञान प्रदाता
कह भगवत कविराय , आपका शत शत वन्दन
विद्या का वरदान हमें दो गौरी नंदन
परम पूज्य भगवन
विनय हमारी आपसे परम पूज्य भगवान
हम बच्चों को दीजिये , विद्या का वरदान
विद्या का वरदान , बुद्धिबल बढ़े हमारा
सदाचार सद्ज्ञान , हमें दे देना सारा ,
कह भगवत कविराय , पड़े हैं शरण तुम्हारी
करना इच्छा पूर्ति , आपसे विनय हमारी
माता शारदे
देना माता शारदे , हमें बुद्धि बल ज्ञान
विनय आपसे कर रहे हम बच्चे नादान ,
हम बच्चे नादान शरण में आये माता ,
ज्ञान कला संगीत , कला की आप प्रदाता ,
कह भगवत कविराय , पुत्र जननी सा नाता ,
हमें सदा सद्बुद्धि , सृजन - सुख देना माता ||
मातु शारदे
मातु शारदे आपका जिन्हे मिला आशीष
उनका सुधि समाज मैं, रहा समुन्नत शीश
रहा समुन्नत शीश , ज्ञान विद्या की दायनी
विणा वदनी आप , कला , संगीत प्रदायनी ,
कह भगवत कविराय , बुद्धि बल का प्रसार दें ,
हंस वाहनी नमन , आपको मातु शारदे
बुद्धि बल देना माता
माता दुर्गा , लक्ष्मी , सौम्य सरस्वती आप
बल वैभव गुण , ज्ञान , सुख सब आशीष- प्रताप।
सब आशीष- प्रताप, शास्त्र सब सुयश बखाने
शौर्य , कांति , संगीत , स्वरों के मिले तराने
कह भगवत कविराय , सृजन से है कुछ नाता
बारम्बार प्रणाम बुद्धिबल देना माता
हो सबका कल्याण
चाहें हम मन वचन से , हो सबका कल्याण
दंभ , लोभ , मद त्यागकर , दें सबको सम्मान
दें सबको सम्मान , तजें हम सभी बुराई
सच्चे मन से करें , नेकियां और भलाई
कह भगवत कविराय , हृदय से उन्हें सराहें
खूब परिश्रम करें, अगर हम उन्नति चाहें
हितकारी वरदान
भगवन हमको दीजिये, हितकारी वरदान
मातु, पिता, गुरु का करें, हम आदर सम्मान
हम आदर सम्मान , बुद्धि बल विद्या पाएं
अपनाएं सन्मार्ग , कुपथ पर कभी न जायें
कह भगवत कविराय , जियें हम सादा जीवन
सदाचार की हमें जिन्दगी , दीजे भगवन ||
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Poem on Education
ज्ञान अनमोल रतन है
धन से सब साधन मिले , किन्तु न मिलता ज्ञान
फिर भी इस सच्चाई से, मानव है अनजान
मानव है अनजान , ज्ञान अनमोल रतन है
बिना ज्ञान के धनी , आदमी भी निर्धन है ,
कह भगवत कविराय , जीत होती है मन से
कभी शांति , संतोष न मिलता भौतिक धन से ||
मन से हो धनवान
धन से तो वैभव मिले, किन्तु न मिलती शांति
जिस घर में दौलत रहे, रहती वह अशांति
रहती वह अशांति , रात दिन चैन न आये
चोरों का भय रहे, चैन की नींद न आये
कह भगवत कविराय , स्वस्थ होवें तन मन से
मन से हों धनवान, न होवें चाहे धन से
सदाचार
सदाचार से आदमी , बनते हैं गुणवान
सदाचारियों को सदा , मिलता है सम्मान
मिलता है सम्मान , सभी सद्गुण अपनाएं
चोरी, जुआं , शराब , झूठ से बचें, बचाएं
कह भगवत कविराय , पतन हो दुराचार से
जीवन में सुख शांति , प्राप्त हो सदाचार से
सत्य
मन - वाणी से कीजिये , सदा सत्य स्वीकार
झूठ, कपट, चोरी, जुआ, करो नहीं व्याभिचार
करो नहीं व्याभिचार , छोड़ दो दुर्गुण सारे
मनुज सत्य - ईमान , नम्रता , सद्गुण धारे
कह भगवत कविराय , प्रेम हो हर प्राणी से
सदा सत्य स्वीकार करें , हम मन - वाणी से
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Poem on Incredible India-भारत देश पर कविता
भारत देश
प्राणो से प्यारा लगे , हमको भारत देश
वैभव से सम्पन्न हैं, इसके सभी प्रदेश
इसके सभी प्रदेश, हिमालय है बर्फीला
मरुथल राजिस्थान , यहाँ यौवन रौविला
कह भगवत कविराय , स्वर्ण निकले खानो से
केरल हरित प्रदेश , लगे प्रिय मन प्राणों से
वीर सिपाही
सीमाओं पे रात दिन , जो रहते तैनात
वीर सिपाही फौज के, उन्हें नवायें माथ
उन्हें नवायें माथ , वतन के हैं रखवाले
मातृभूमि के लिए सीष कटवाने वाले
कह भगवत कविराय , गर्व है माताओं पर
जिनके वीर सपूत डटे हैं सीमाओं पर ||
गंगा , यमुना
गंगा , यमुना , नर्मदा , नदियां जहाँ विशाल
उत्तर में हिमगिरि खड़ा , करके उन्नत भाल
करके उन्नत भाल , नदी कृष्णा , कावेरी
हरियाली से भरी , दक्षिणी छटा घनेरी
कह भगवत कविराय , राष्ट्रध्वज उड़े तिरंगा
उर्वर करती भूमी , सींचकर पावन गंगा ||
देव तुल्य माँ -बाप
जो अपने माँ बाप का करते हैं सम्मान ,
ईश्वर से मिलता उन्हें, मन चाहा वरदान
मन चाहा वरदान , बड़ों का आदर करते
गुरु चरणों पैर शीश , विनत होकर जो धरते
कह भगवत कविराय , पूर्ण हों उनके सपने
देव तुल्य माँ बाप , पूजतें हैं जो अपने ||
सुन्दर वन
सुन्दर वन है डेल्टा , जहाँ सिन्धु बंगाल
वन में रहते टाइगर , जंतु अनेक विशाल
जंतु अनेक विशाल , वही पैर चिड़ियाघर है
हरियाली से भरा , पूर्वी तट सागर है
कह भगवत कविराय , मुग्ध हो जाता मन है
सुन्दर रम्य प्रदेश , डेल्टा सुन्दर वन है
रंग -बिरंगा देश यह
रंग -बिरंगा देश यह , हे आपस में प्यार
सभी मनाते हैं यहाँ , मिलकर सब त्यौहार
मिलकर सब त्यौहार , ईद , होली, दीवाली
मिलें ईद में गले , फ़ाग में छाये लाली
कह भगवत कविराय , सभी का मान तिरंगा
अलग -अलग परिवेश , भेष है रंग-बिरंगा ||
बोलें मीठे बोल
हीरे-मोती से झरें , बोलें मीठे बोल
दूर करें कटुता , घृणा , देवें मिश्री घोल
देवें मिश्री घोल , बात कड़वी मत बोलें
पहले करें विचार , तभी अपना मुँह खोलें
कह भगवत कविराय , शहद शब्दों में होती
वाणी है अनमोल , झाराओ हीरे मोती ||
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तन -मन होवें स्वस्थ

जीवन जीते नर्क सा, जो रहते बीमार
तन मन होवें स्वस्थ तो, उपजें उच्च विचार
उपजें उच्च विचार , रखें हम साफ सफाई
रोज़ करें व्यायाम , और हम करें पढाई
कह भगवत कविराय , करें नित तजा भोजन
लेवें शाकाहार , सुधारें तन मन जीवन ||
मन प्रसन्न , तन स्वस्थ हो
रोगी होवे तन अगर, मन भी जाता हार
मन प्रसन्न तन स्वस्थ हो, तब जीने का सार
तब जीने का सार , स्वस्थ हो तन मन अपना
योगो,प्राणायाम कराये पूरा सपना
कह भगवत कविराय , धनि वः जो निरोगी
उनका धन है व्यर्थ , जो की तन मन के रोगी
रखें देश को स्वच्छ
कूड़ा-करकट गंदगी, रहे न घर के पास
लिपे-पुते घर द्वार हों, भर देवें उल्लास
भर देवें उल्लास , दूर भागे बीमारी
गांव शहर हों स्वच्छ , स्वस्थ हों सब नर-नारी
कह भगवत कविराय , सजग हों बच्चा -बूढ़ा
रखें देश को स्वच्छ , मिटायें कचरा कूड़ा ||
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लिपा पुता घर

छोटा हो पर स्वच्छ हो, सुन्दर लगे मकान
जिसमें हम रहते वहाँ, बसते हैं मन प्राण
बसते हैं मन प्राण , न हो घर चाहे पक्का
लिपा पुता घर स्वच्छ रहे छोटा का कच्चा
कह भगवत कविराय , रहें कम थाली-लोटा
रहे प्रेम सद्भाव भले घर होव छोटा
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पोंगल हो या लोहड़ी

पोंगल हो या लोहड़ी , या की मकर संक्रांति
पग-पग पर होवे सफल , उन्नति कारक क्रांति
उन्नति कारक क्रांति , ख़ुशी से पर्व मनायें
हर घर में पैगाम , प्रगति के हम पहुँचायें
कह भगवत कविराय , विश्व भर का मंगल हो
ईद,दिवाली, फाग , लोहड़ी या पोंगल हो
दीवाली

दीवाली त्यौहार है, यह प्रकाश का पर्व
इसे मनाते हैं सभी, भर उल्लास सगर्व
भर उल्लास सगर्व , चतुर्दिक दिखे सफाई
बम्म फटाके , चलें, कहीं फुलझड़ियां भाई
कह भगवत कविराय , अमावस होती काली
उसको जगमग करें मनाकर , हम दीवाली
होली

आता फागुन मास में होली का त्यौहार
उड़ने लगे अबीर हो, रंगों की बौछार
रंगों की बौछार , लोग गाते हैं फागें
जला होलिका, राग द्वेष सब अपने त्यागें
कह भगवत कविराय , चतुर्दिक रँग छा जाता
होली का त्यौहार , माह फागुन में आता
रक्षाबंधन

रक्षा बंधन प्रेम का, है पावन त्यौहार
बाँधें भाई को बहन , रेशम के कुछ तार
रेशम के कुछ तार , पूर्णिमा हो सावन की
करतीं प्रीति प्रगाढ़, राखियां भाई बहन की
कह भगवत कविराय , माह जब आता सावन
तब हिन्दू परिवार, मानते रक्षा बंधन ||
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कलम

रखिये कलम सम्हालकर , आती अपने काम
पैन,कलम, या लेखनी , इसके कितने नाम
इसके कितने नाम , रखें बच्चे बस्ते में
लगती छोटी रिफिल, मिला करती सस्ते में
कह भगवत कविराय , इबारत खूब परखिये
हो जावें जब काम, कलम खींसा में रखिये
दर्जी

दर्जी के बिन क्या भला चले किसी का काम
पूजनीय होता हुनर , मोची या हज्जाम
मोची या हज्जाम , बढ़ईगीरी , लोहरी
सबके अपने हुनर , शिल्पकारी श्रृंगारी
कह भगवत कविराय , सीलाओ जो हो मर्जी
बंशकार रैदास , कलानिधि होते दर्जी
बेईमानी

बेईमानी पाप है, कुटिल धूर्त का काम
क्रूर ,दुराचारी सदा , भोगें दुष्परिणाम
भोगें दुष्परिणाम , करें जो गोरखंधधे
धोकेबाजी करें, मूढ़ आँखों के अंधे
कह भगवत कविराय , मरा आंखों का पानी
हैं कलंक वे लोग करें जो बेईमानी
दाँत की करें सफाई

दाँतों की रक्षा करें, टूथपेस्ट , दातोन
लेकिन नीम बाबुल का , करे सामना कोन
करे सामना कोन , दाँत की करो सफाई
रहें दाँत मजबूत , बात यह समझो भाई
कह भगवत कविराय , मदद करते आँतों की
इसलिए तो रोज़, सफाई हो दांतों की
नहाओ शीतल जल से

जल से रोज़ नहाइये, करिये नित व्यायाम
स्वस्थ निरोगी तन रखे, योगा प्राणायाम
योगा प्राणायाम , सुबह यदि दौड़ लगायें
तन मन रहे प्रसन्न , नियम से शाला जायें
कह भगवत कविराय , अभी से ,कहो न कल से
रहना स्वस्थ प्रसन्न , नहाओ शीतल जल से
शाला पढ़ने जाीइये

शाला पढ़ने जाीइये , मिले वहां पर ज्ञान
शाला , मंदिर की तरह , गुरुवर हैं भगवान
गुरुवर हैं भगवान , हमें जो पाठ पढ़ाते
हल करवाते प्रश्न , हमारा ज्ञान बढ़ाते
कह भगवत कविराय , सफल हो पढ़ने वाला
विद्याध्यन के लिए, जाइये अपनी शाला
दरवाजा

दरवाजा खुलवाइये देकरके आवाज़
मर्यादा में कीजिये, सोच समझकर काज
सोच समझकर काज , डोर पर बेल बजावें
दस्तक देवें तभी, द्वार के भीतर जावें
कह भगवत कविराय , नीतिगत यही तकाजा
खटखटाइये भले, खुला होवे दरवाजा
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चश्मा

चश्मा चढ़कर नाक पर , पकडे दोनों कान
दे आंको को रौशनी, पढ़लो वेद पुरान
पढ़लो वेद पुरान , आँख की ज्योति बढ़ता
दूर पास की वस्तु , सुगमता से दिखलाता
कह भगवत कविराय , करे विज्ञानं करिश्मा
धूल,धुप से हमें बचता है यह चश्मा
मोबाइल

मोबाइल से आजकल , हुई बात आसान
कितना उपयोगी हुआ, देखो तो विज्ञानं
देखो तो विज्ञानं , यंत्र है बिलकुल छोटा
भेजे देश विदेश, संदेशा छोटा मोटा
कह भगवत कविराय , फीड कर सकता फाइल
बड़ा सुचना तंत्र, एक छोटा मोबाइल
टी.वी.

यह टी.वी का यंत्र है , बड़े काम का आज
देखो इससे जुड़ गया, सारा विश्व समाज
सारा विश्व समाज , मिटाई इसने दूरी
इसकी पिक्चर देख, हुई इच्छाएं पूरी
कह भगवत कविराय , देखते बच्चे, बीवी
दुनिया भर की सैर , करा देता यह टी.वी
विज्ञान

कितने आगे बढ़ गया देखो यह विज्ञान
मानव ने भिजवा दिया, मंगल गृह तक यान
मंगल गृह तक यान , फोन , टीवी कंप्यूटर
करें विश्व में बात, दबाकर अनगिन नंबर
कह भगवत कविराय , भोगते हैं सुख इतने
आविष्कारी ज्ञान , बढ़ा है आगे कितने
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गक्कड़

गक्कड़ को मत मानिये, घटिया खाद्य पदार्थ
छप्पन भोगों को करे, यह फीका चरितार्थ
यह फीका चरितार्थ , गक्कड़ें ,भरता ,चटनी
पिज़्ज़ा , बर्गर कहा टिकें, कर देवें छटनी
कह भगवत कविराय , दिबाकर घी में गक्कड़
बेंगन, आलू , प्याज़ , भुरतकर खालो गक्कड़
सब्जियाँ

ताजी खायें सब्जियां , गोभी, आलू, प्याज
भाजी काने में भला , हमको किसी लाज
हमको किसी लाज , चोराई , मैथी , पालक
परबल ,मटर, फरास , रक्त रक्त की शलजम चालक
कह भगवत कविराय , टमाटर , बेंगन , भाजी
सब्जी कोई रहे मगर होव ताजी
रसोई

खायें तजि सब्जियां , हरी फल्लियों दार
खट्टे-मीठे लीजिये ,रोटी संग अचार
रोटी संग अचार , दाल चावल या पूरी
बिना बरा के रहे , रसोई सदा अधूरी
कह भगवत कविराय , हींग का चौंक लगायें
कढ़ी भात के संग , बिजौरे, पापड़ खायें
दूध दही घी

दूध दही घी खाईये , मिलती शक्ति अपार
गाय , भैंस , बकरी, हमें , देती यह उपहार
देती यह उपहार , दूध बल बुद्धी बढ़ाये
होता तेज दिमाग , दूध , घी जो भी खाये
कह भगवत कविराय , पूर्ति हो दही-माहि की
गाय , भैंस लो पाल मिलेगा दूध,दही , घी
पानी

पानी से जीवन चले, पानी है अनमोल
व्यर्थ न बहने दो इसे , मानव आँखें खोल
मानव आँखें खोल , मूल्य इसका पहचानो
जीवन का आधार ,इसे तुम अमृत मानो
कह भगवत कविराय न करना तुम मनमानी
ईश्वर का वरदान , मिला है हमको पानी
बादल

पानी लेकर दौड़ते , नभ पर बदल श्याम
लगे घटाओं की छठा , मोहक और ललाम
मोहक और ललाम , गरजते बादल आते
बरस मूसलाधार, धरा की प्यास बुझाते
कह भगवत कविराय , धरा की चूनर धानी
जीवन का आधार, कीमती है यह पानी
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लदी फल से अमराई

अमराई बौरा गई, खिले करोडो फूल
इंद्रधनुष जिसे लगे, मोहक प्रकृति दुकूल
मोहक प्रकृति दुकूल , खिले हैं टेसू-सेमल
सुरभित मलय बयार , किये देती है पागल
कह भगवत कविराय , प्रकृति ने ली अंगड़ाई
कोयल गए गीत, लड़ी फल से अमराई
वृक्षरोपण

वृक्षरोपण के बिना, संभव नहीं निदान
आज प्रदुषण हो रहा , घातक ओ' बलवान
घातक ओ' बलवान , चतुर्दिक घाट लगाए
पर्यावरण सुधार , व्याधि से हमें बचाये
कह भगवत कविराय ,करो मत दोषारोपण
प्रकृति रहे गुलज़ार, करें सब वृक्षरोपण
फटी हरियाली चादर

हरियाली चादर नहीं ,अब धरती के पास
खड़े विटप भयभीत से ,जर्जर रुग्ण उदास
जर्जर ,रुग्ण ,उदास ,बृक्ष जो कटते जाते
इसीलिए तो दूर ,छिटककर बादल जाते
कह भगवत कविराय ,प्रदूषण रखा बिछाकर
अतः प्रकृति की आज फ़टी हरियाली चादर
बाग़ -बगीचे

बाग़ -बगीचे हो हरे ,खिले सुगंधित फूल
हरियाली से हो भरा ,मोहक प्रकृति दुकूल
मोहक प्रकृति दुकूल ,चतुर्दिक हो हरियाली
वृक्षारोपण करे ,धरा पर हो खुशहाली
कह भगवत कविराय ,दूब के बिछे गलीचे
इन्द्र धनुष सी छटा ,बिखेरे बाग़ -बगीचे
हरियाली

हरियाली अच्छी लगे ,भाते है वन ,वृक्ष
गर्मी टिक पाती नहीं ,वृक्षों के समकक्ष
वृक्षों के समकक्ष ,धरा पर होवें जंगल
इनसे वर्षा और इन्ही से रहता मंगल
कह भगवत कविराय,भूमि जो मरुथल वाली।
रहती नीरस शुष्क ,बिछा दो अब हरियाली
सूरज

सूरज दादा ठंड में, देते हमे सुकून
गर्माते कपड़े वही, जिनमे होता ऊन
जिनमे होता ऊन ,ठण्ड में धुप सुहानी
गर्मी में यह याद ,दिला देता है नानी
कह भगवत कविराय, ग्रीष्म में तपते ज्यादा
नक्षत्रो के प्रमुख ,हमारे सूरज दादा।
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गंगा

स्वच्छ रखेंगे नद-नदी , लेते हैं संकल्प
अगर ठान लें लोग सब, होवे काया कल्प
होवे काया कल्प , बढ़ें सब करें सफाई
हिन्दू,मुस्लिम, सिक्ख सभी आजायें भाई
कह भगवत कविराय, सफाई रोज़ करेंगे
नदी, कुएं ,तालाब सभी को स्वच्छ रहेंगे
नर्मदा

जिसका हर कंकर हुआ , शंकर सदृश महान
उसी नर्मदा का सुयश , गाते वेद पुरान
गाते वेद पुरान , नदी दर्शन से तारे
हर लेती है मातु नर्मदा, संकट सारे
कह भगवत कविराय, दृश्य है अनुपम इसका
बन्दर कूदनी पाट , बहुत सकरा है जिसका
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पशु-पक्षी

पशु-पक्षी और जंतु हैं , सभी हमारे मित्र
इनसे ही सुन्दर लगे, धरती माँ का चित्र
धरती माँ का चित्र , बाघ , मृग , केहरि,हाथी
गाय , बेल , अज , अश्व ,सभी मानव के साथी
कह भगवत कविराय , मारते अमिषभक्षी
जंगल हो गुलज़ार , बचेंगे तब पशु-पक्षी
भालू

भालू झबरीला रहे, पूरे तन पर बाल
भालू है पशु जंगली , लोग इसे ले पाल
लोग इसे ले पाल , रीछ यह बड़ा शिकारी
इसको डाल नकेल, नचाता कुशल मदारी
कह भगवत कविराय , जहा मौसम बर्फीला
होता भूरा ,श्वेत , वहाँ भालू झबरीला
पूज्य हमारी गाय

पशुधन में है श्रेष्ठ यह, पूज्य हमारी गाय
गाय पालकर राखिये , यही हमारी राय
यही हमारी राय , सरल सीधी गोमता
दूध-दही नवनीत , छाछ घृत सब मिल जाता
कह भगवत कविराय , शांति सुख दे जीवन में
औषधि है गोमूत्र , श्रेष्ट है गौ , पशुधन में
बकरी

बकरी है पशु पालतू , है चेरी भी नाम
इसके पाचक दूध से , होता दूर जुखाम
होता दूर जुखाम , बकरियां पत्ती खातीं
औषधि जैसा दूध, पुष्टिकर हमें पिलातीं
कह भगवत कविराय , लाल, काली या कबरी
गाँधी जी को रही हमेशा प्यारी बकरी
भेंस

मट्ठर होती भेंस यह, देती गाढ़ा दुग्ध
दूध, दही, घी, छाछ से, करती हमें विमुग्ध
करती हमें विमुग्ध , आय का अच्छा धंधा
करें मिलावटखोर , दूध में गोरखधंधा
कह भगवत कविराय , चरे चारे का गटठर
मत बजाइये हॉर्न , भेंस होती है मट्ठर
ऊँठ

कहलाता मरू भूमि का, कोमिल, ऊँठ जहाज
चारे के बिन पलना, बहुत कठिन है आज
बहुत कठिन है आज , चली वृक्षों पर आरी
मरुथल में यह चले , उठाकर बोझा भारी
कह भगवत कविराय , बहुत पानी पी जाता
मरू का , ऊँठ जहाज , इसी कारन कहलाता
चिड़िया

चूँ-चूँ करती विचरती , चिड़िया घर के पास
बच्चों को मोहित करे, मन में भरे उजास
मन में भरे उजास , फुदकती घर आंगन में
पशु-पक्षी आनन्द भरा करते जीवन में
कह भगवत कविराय , फुर्र से हो जाती छू
कितनी प्यारी लगे, हमें इन चिड़िया की चूँ
गौरइया
कभी फुदकती औ ' उड़े , चिड़ियां घर के पास
कानों को प्यारी लगे, चूँ -चूँ भरी मिठास
चूँ -चूँ भरी मिठास , दौड़ते पीछे बच्चे
होते अपने मित्र सभी, पशु पक्षी अच्छे
कह भगवत कविराय , फुर्र से उड़े चहकती
गौरइया यह चिड़ी , घरों में कभी फुदकती
तितलियाँ
(इस कविता में आप अपने घर के बच्चों के नाम लगा सकते हैं)
रंग बिरंगी तितलियाँ , उड़ती घर के पास
उन्हें पकड़ने दौड़ते भय्यू , पार्थ, पलाश
भय्यू , पार्थ, पलाश , टोलियां पकड़ न पाती
पहुँचे पास कुशाग्र , देख कृति को उड़ जाती
कह भगवत कविराय , लगे मन मोहक चंगी
कितनी प्यारी लगें , तितलियां रंग-बिरंगी
नन्हे नटखट
मोती से आँसू झरा, मनवा लेते बात
नन्हे नटखट रूठकर , करें खूब उत्पात
करें खूब उत्पात , हमें ठनगन बतलाते
अपने आँसू दिखा, रूठकर हमें सताते
कह भगवत कविराय , आँख अपनी नम होती
जब चंचल चितचोर, झरा देते हैं मोती
रंग -बिरंगा देश यह , हे आपस में प्यार
सभी मनाते हैं यहाँ , मिलकर सब त्यौहार
मिलकर सब त्यौहार , ईद , होली, दीवाली
मिलें ईद में गले , फ़ाग में छाये लाली
कह भगवत कविराय , सभी का मान तिरंगा
अलग -अलग परिवेश , भेष है रंग-बिरंगा ||
बोलें मीठे बोल
हीरे-मोती से झरें , बोलें मीठे बोल
दूर करें कटुता , घृणा , देवें मिश्री घोल
देवें मिश्री घोल , बात कड़वी मत बोलें
पहले करें विचार , तभी अपना मुँह खोलें
कह भगवत कविराय , शहद शब्दों में होती
वाणी है अनमोल , झाराओ हीरे मोती ||
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Poem on healthy habits

जीवन जीते नर्क सा, जो रहते बीमार
तन मन होवें स्वस्थ तो, उपजें उच्च विचार
उपजें उच्च विचार , रखें हम साफ सफाई
रोज़ करें व्यायाम , और हम करें पढाई
कह भगवत कविराय , करें नित तजा भोजन
लेवें शाकाहार , सुधारें तन मन जीवन ||
मन प्रसन्न , तन स्वस्थ हो
रोगी होवे तन अगर, मन भी जाता हार
मन प्रसन्न तन स्वस्थ हो, तब जीने का सार
तब जीने का सार , स्वस्थ हो तन मन अपना
योगो,प्राणायाम कराये पूरा सपना
कह भगवत कविराय , धनि वः जो निरोगी
उनका धन है व्यर्थ , जो की तन मन के रोगी
रखें देश को स्वच्छ
कूड़ा-करकट गंदगी, रहे न घर के पास
लिपे-पुते घर द्वार हों, भर देवें उल्लास
भर देवें उल्लास , दूर भागे बीमारी
गांव शहर हों स्वच्छ , स्वस्थ हों सब नर-नारी
कह भगवत कविराय , सजग हों बच्चा -बूढ़ा
रखें देश को स्वच्छ , मिटायें कचरा कूड़ा ||
ये भी पढ़े-स्वच्छ भारत पर कविताएं
लिपा पुता घर

छोटा हो पर स्वच्छ हो, सुन्दर लगे मकान
जिसमें हम रहते वहाँ, बसते हैं मन प्राण
बसते हैं मन प्राण , न हो घर चाहे पक्का
लिपा पुता घर स्वच्छ रहे छोटा का कच्चा
कह भगवत कविराय , रहें कम थाली-लोटा
रहे प्रेम सद्भाव भले घर होव छोटा
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Poem on Indian Festivals

पोंगल हो या लोहड़ी , या की मकर संक्रांति
पग-पग पर होवे सफल , उन्नति कारक क्रांति
उन्नति कारक क्रांति , ख़ुशी से पर्व मनायें
हर घर में पैगाम , प्रगति के हम पहुँचायें
कह भगवत कविराय , विश्व भर का मंगल हो
ईद,दिवाली, फाग , लोहड़ी या पोंगल हो
दीवाली

दीवाली त्यौहार है, यह प्रकाश का पर्व
इसे मनाते हैं सभी, भर उल्लास सगर्व
भर उल्लास सगर्व , चतुर्दिक दिखे सफाई
बम्म फटाके , चलें, कहीं फुलझड़ियां भाई
कह भगवत कविराय , अमावस होती काली
उसको जगमग करें मनाकर , हम दीवाली
होली

आता फागुन मास में होली का त्यौहार
उड़ने लगे अबीर हो, रंगों की बौछार
रंगों की बौछार , लोग गाते हैं फागें
जला होलिका, राग द्वेष सब अपने त्यागें
कह भगवत कविराय , चतुर्दिक रँग छा जाता
होली का त्यौहार , माह फागुन में आता
रक्षाबंधन

रक्षा बंधन प्रेम का, है पावन त्यौहार
बाँधें भाई को बहन , रेशम के कुछ तार
रेशम के कुछ तार , पूर्णिमा हो सावन की
करतीं प्रीति प्रगाढ़, राखियां भाई बहन की
कह भगवत कविराय , माह जब आता सावन
तब हिन्दू परिवार, मानते रक्षा बंधन ||
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कलम

रखिये कलम सम्हालकर , आती अपने काम
पैन,कलम, या लेखनी , इसके कितने नाम
इसके कितने नाम , रखें बच्चे बस्ते में
लगती छोटी रिफिल, मिला करती सस्ते में
कह भगवत कविराय , इबारत खूब परखिये
हो जावें जब काम, कलम खींसा में रखिये
दर्जी

दर्जी के बिन क्या भला चले किसी का काम
पूजनीय होता हुनर , मोची या हज्जाम
मोची या हज्जाम , बढ़ईगीरी , लोहरी
सबके अपने हुनर , शिल्पकारी श्रृंगारी
कह भगवत कविराय , सीलाओ जो हो मर्जी
बंशकार रैदास , कलानिधि होते दर्जी
बेईमानी

बेईमानी पाप है, कुटिल धूर्त का काम
क्रूर ,दुराचारी सदा , भोगें दुष्परिणाम
भोगें दुष्परिणाम , करें जो गोरखंधधे
धोकेबाजी करें, मूढ़ आँखों के अंधे
कह भगवत कविराय , मरा आंखों का पानी
हैं कलंक वे लोग करें जो बेईमानी
दाँत की करें सफाई

दाँतों की रक्षा करें, टूथपेस्ट , दातोन
लेकिन नीम बाबुल का , करे सामना कोन
करे सामना कोन , दाँत की करो सफाई
रहें दाँत मजबूत , बात यह समझो भाई
कह भगवत कविराय , मदद करते आँतों की
इसलिए तो रोज़, सफाई हो दांतों की
नहाओ शीतल जल से

जल से रोज़ नहाइये, करिये नित व्यायाम
स्वस्थ निरोगी तन रखे, योगा प्राणायाम
योगा प्राणायाम , सुबह यदि दौड़ लगायें
तन मन रहे प्रसन्न , नियम से शाला जायें
कह भगवत कविराय , अभी से ,कहो न कल से
रहना स्वस्थ प्रसन्न , नहाओ शीतल जल से
शाला पढ़ने जाीइये

शाला पढ़ने जाीइये , मिले वहां पर ज्ञान
शाला , मंदिर की तरह , गुरुवर हैं भगवान
गुरुवर हैं भगवान , हमें जो पाठ पढ़ाते
हल करवाते प्रश्न , हमारा ज्ञान बढ़ाते
कह भगवत कविराय , सफल हो पढ़ने वाला
विद्याध्यन के लिए, जाइये अपनी शाला
दरवाजा

दरवाजा खुलवाइये देकरके आवाज़
मर्यादा में कीजिये, सोच समझकर काज
सोच समझकर काज , डोर पर बेल बजावें
दस्तक देवें तभी, द्वार के भीतर जावें
कह भगवत कविराय , नीतिगत यही तकाजा
खटखटाइये भले, खुला होवे दरवाजा
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Best Poetry about Science

चश्मा चढ़कर नाक पर , पकडे दोनों कान
दे आंको को रौशनी, पढ़लो वेद पुरान
पढ़लो वेद पुरान , आँख की ज्योति बढ़ता
दूर पास की वस्तु , सुगमता से दिखलाता
कह भगवत कविराय , करे विज्ञानं करिश्मा
धूल,धुप से हमें बचता है यह चश्मा
मोबाइल

मोबाइल से आजकल , हुई बात आसान
कितना उपयोगी हुआ, देखो तो विज्ञानं
देखो तो विज्ञानं , यंत्र है बिलकुल छोटा
भेजे देश विदेश, संदेशा छोटा मोटा
कह भगवत कविराय , फीड कर सकता फाइल
बड़ा सुचना तंत्र, एक छोटा मोबाइल
टी.वी.

यह टी.वी का यंत्र है , बड़े काम का आज
देखो इससे जुड़ गया, सारा विश्व समाज
सारा विश्व समाज , मिटाई इसने दूरी
इसकी पिक्चर देख, हुई इच्छाएं पूरी
कह भगवत कविराय , देखते बच्चे, बीवी
दुनिया भर की सैर , करा देता यह टी.वी
विज्ञान

कितने आगे बढ़ गया देखो यह विज्ञान
मानव ने भिजवा दिया, मंगल गृह तक यान
मंगल गृह तक यान , फोन , टीवी कंप्यूटर
करें विश्व में बात, दबाकर अनगिन नंबर
कह भगवत कविराय , भोगते हैं सुख इतने
आविष्कारी ज्ञान , बढ़ा है आगे कितने
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Poem on Vegetables, Milk and Healthy Food Items

गक्कड़ को मत मानिये, घटिया खाद्य पदार्थ
छप्पन भोगों को करे, यह फीका चरितार्थ
यह फीका चरितार्थ , गक्कड़ें ,भरता ,चटनी
पिज़्ज़ा , बर्गर कहा टिकें, कर देवें छटनी
कह भगवत कविराय , दिबाकर घी में गक्कड़
बेंगन, आलू , प्याज़ , भुरतकर खालो गक्कड़
सब्जियाँ

ताजी खायें सब्जियां , गोभी, आलू, प्याज
भाजी काने में भला , हमको किसी लाज
हमको किसी लाज , चोराई , मैथी , पालक
परबल ,मटर, फरास , रक्त रक्त की शलजम चालक
कह भगवत कविराय , टमाटर , बेंगन , भाजी
सब्जी कोई रहे मगर होव ताजी
रसोई

खायें तजि सब्जियां , हरी फल्लियों दार
खट्टे-मीठे लीजिये ,रोटी संग अचार
रोटी संग अचार , दाल चावल या पूरी
बिना बरा के रहे , रसोई सदा अधूरी
कह भगवत कविराय , हींग का चौंक लगायें
कढ़ी भात के संग , बिजौरे, पापड़ खायें
दूध दही घी

दूध दही घी खाईये , मिलती शक्ति अपार
गाय , भैंस , बकरी, हमें , देती यह उपहार
देती यह उपहार , दूध बल बुद्धी बढ़ाये
होता तेज दिमाग , दूध , घी जो भी खाये
कह भगवत कविराय , पूर्ति हो दही-माहि की
गाय , भैंस लो पाल मिलेगा दूध,दही , घी
पानी

पानी से जीवन चले, पानी है अनमोल
व्यर्थ न बहने दो इसे , मानव आँखें खोल
मानव आँखें खोल , मूल्य इसका पहचानो
जीवन का आधार ,इसे तुम अमृत मानो
कह भगवत कविराय न करना तुम मनमानी
ईश्वर का वरदान , मिला है हमको पानी
बादल

पानी लेकर दौड़ते , नभ पर बदल श्याम
लगे घटाओं की छठा , मोहक और ललाम
मोहक और ललाम , गरजते बादल आते
बरस मूसलाधार, धरा की प्यास बुझाते
कह भगवत कविराय , धरा की चूनर धानी
जीवन का आधार, कीमती है यह पानी
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Poem on Nature for kids

अमराई बौरा गई, खिले करोडो फूल
इंद्रधनुष जिसे लगे, मोहक प्रकृति दुकूल
मोहक प्रकृति दुकूल , खिले हैं टेसू-सेमल
सुरभित मलय बयार , किये देती है पागल
कह भगवत कविराय , प्रकृति ने ली अंगड़ाई
कोयल गए गीत, लड़ी फल से अमराई
वृक्षरोपण

वृक्षरोपण के बिना, संभव नहीं निदान
आज प्रदुषण हो रहा , घातक ओ' बलवान
घातक ओ' बलवान , चतुर्दिक घाट लगाए
पर्यावरण सुधार , व्याधि से हमें बचाये
कह भगवत कविराय ,करो मत दोषारोपण
प्रकृति रहे गुलज़ार, करें सब वृक्षरोपण
फटी हरियाली चादर

हरियाली चादर नहीं ,अब धरती के पास
खड़े विटप भयभीत से ,जर्जर रुग्ण उदास
जर्जर ,रुग्ण ,उदास ,बृक्ष जो कटते जाते
इसीलिए तो दूर ,छिटककर बादल जाते
कह भगवत कविराय ,प्रदूषण रखा बिछाकर
अतः प्रकृति की आज फ़टी हरियाली चादर
बाग़ -बगीचे

बाग़ -बगीचे हो हरे ,खिले सुगंधित फूल
हरियाली से हो भरा ,मोहक प्रकृति दुकूल
मोहक प्रकृति दुकूल ,चतुर्दिक हो हरियाली
वृक्षारोपण करे ,धरा पर हो खुशहाली
कह भगवत कविराय ,दूब के बिछे गलीचे
इन्द्र धनुष सी छटा ,बिखेरे बाग़ -बगीचे
हरियाली

हरियाली अच्छी लगे ,भाते है वन ,वृक्ष
गर्मी टिक पाती नहीं ,वृक्षों के समकक्ष
वृक्षों के समकक्ष ,धरा पर होवें जंगल
इनसे वर्षा और इन्ही से रहता मंगल
कह भगवत कविराय,भूमि जो मरुथल वाली।
रहती नीरस शुष्क ,बिछा दो अब हरियाली
सूरज

सूरज दादा ठंड में, देते हमे सुकून
गर्माते कपड़े वही, जिनमे होता ऊन
जिनमे होता ऊन ,ठण्ड में धुप सुहानी
गर्मी में यह याद ,दिला देता है नानी
कह भगवत कविराय, ग्रीष्म में तपते ज्यादा
नक्षत्रो के प्रमुख ,हमारे सूरज दादा।
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Poem on Indian Rivers

स्वच्छ रखेंगे नद-नदी , लेते हैं संकल्प
अगर ठान लें लोग सब, होवे काया कल्प
होवे काया कल्प , बढ़ें सब करें सफाई
हिन्दू,मुस्लिम, सिक्ख सभी आजायें भाई
कह भगवत कविराय, सफाई रोज़ करेंगे
नदी, कुएं ,तालाब सभी को स्वच्छ रहेंगे
नर्मदा

जिसका हर कंकर हुआ , शंकर सदृश महान
उसी नर्मदा का सुयश , गाते वेद पुरान
गाते वेद पुरान , नदी दर्शन से तारे
हर लेती है मातु नर्मदा, संकट सारे
कह भगवत कविराय, दृश्य है अनुपम इसका
बन्दर कूदनी पाट , बहुत सकरा है जिसका
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Poem on Animals

पशु-पक्षी और जंतु हैं , सभी हमारे मित्र
इनसे ही सुन्दर लगे, धरती माँ का चित्र
धरती माँ का चित्र , बाघ , मृग , केहरि,हाथी
गाय , बेल , अज , अश्व ,सभी मानव के साथी
कह भगवत कविराय , मारते अमिषभक्षी
जंगल हो गुलज़ार , बचेंगे तब पशु-पक्षी
भालू

भालू झबरीला रहे, पूरे तन पर बाल
भालू है पशु जंगली , लोग इसे ले पाल
लोग इसे ले पाल , रीछ यह बड़ा शिकारी
इसको डाल नकेल, नचाता कुशल मदारी
कह भगवत कविराय , जहा मौसम बर्फीला
होता भूरा ,श्वेत , वहाँ भालू झबरीला
पूज्य हमारी गाय

पशुधन में है श्रेष्ठ यह, पूज्य हमारी गाय
गाय पालकर राखिये , यही हमारी राय
यही हमारी राय , सरल सीधी गोमता
दूध-दही नवनीत , छाछ घृत सब मिल जाता
कह भगवत कविराय , शांति सुख दे जीवन में
औषधि है गोमूत्र , श्रेष्ट है गौ , पशुधन में
बकरी

बकरी है पशु पालतू , है चेरी भी नाम
इसके पाचक दूध से , होता दूर जुखाम
होता दूर जुखाम , बकरियां पत्ती खातीं
औषधि जैसा दूध, पुष्टिकर हमें पिलातीं
कह भगवत कविराय , लाल, काली या कबरी
गाँधी जी को रही हमेशा प्यारी बकरी
भेंस

मट्ठर होती भेंस यह, देती गाढ़ा दुग्ध
दूध, दही, घी, छाछ से, करती हमें विमुग्ध
करती हमें विमुग्ध , आय का अच्छा धंधा
करें मिलावटखोर , दूध में गोरखधंधा
कह भगवत कविराय , चरे चारे का गटठर
मत बजाइये हॉर्न , भेंस होती है मट्ठर
ऊँठ

कहलाता मरू भूमि का, कोमिल, ऊँठ जहाज
चारे के बिन पलना, बहुत कठिन है आज
बहुत कठिन है आज , चली वृक्षों पर आरी
मरुथल में यह चले , उठाकर बोझा भारी
कह भगवत कविराय , बहुत पानी पी जाता
मरू का , ऊँठ जहाज , इसी कारन कहलाता
चिड़िया

चूँ-चूँ करती विचरती , चिड़िया घर के पास
बच्चों को मोहित करे, मन में भरे उजास
मन में भरे उजास , फुदकती घर आंगन में
पशु-पक्षी आनन्द भरा करते जीवन में
कह भगवत कविराय , फुर्र से हो जाती छू
कितनी प्यारी लगे, हमें इन चिड़िया की चूँ
गौरइया
कभी फुदकती औ ' उड़े , चिड़ियां घर के पास
कानों को प्यारी लगे, चूँ -चूँ भरी मिठास
चूँ -चूँ भरी मिठास , दौड़ते पीछे बच्चे
होते अपने मित्र सभी, पशु पक्षी अच्छे
कह भगवत कविराय , फुर्र से उड़े चहकती
गौरइया यह चिड़ी , घरों में कभी फुदकती
तितलियाँ
(इस कविता में आप अपने घर के बच्चों के नाम लगा सकते हैं)
रंग बिरंगी तितलियाँ , उड़ती घर के पास
उन्हें पकड़ने दौड़ते भय्यू , पार्थ, पलाश
भय्यू , पार्थ, पलाश , टोलियां पकड़ न पाती
पहुँचे पास कुशाग्र , देख कृति को उड़ जाती
कह भगवत कविराय , लगे मन मोहक चंगी
कितनी प्यारी लगें , तितलियां रंग-बिरंगी
नन्हे नटखट
मोती से आँसू झरा, मनवा लेते बात
नन्हे नटखट रूठकर , करें खूब उत्पात
करें खूब उत्पात , हमें ठनगन बतलाते
अपने आँसू दिखा, रूठकर हमें सताते
कह भगवत कविराय , आँख अपनी नम होती
जब चंचल चितचोर, झरा देते हैं मोती
अगर आप कविताओं से "कह भगवत कविराय " को बदलना चाहते हैं तो आप उसे " कहते हैं कविराय " कर सकते हैं.
so these were some Best hindi poem for kids for nursery, class 1, class 2 , class 3, class 4 , class 5. All these Hindi poems are with rhymes and lyrics and are very short and easy to learn and remember. ye sabhi poem hindi mai hain . in kavita ko aapke bachche school me ga sakte hain or competition jeet sakte hain.
भगवत दुबे जी द्वारा अक्कड़-बक्कड़ बच्चों की कविता की पुस्तक amazon से खरीदें- यहाँ क्लिक करें
asd
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