स्वच्छ भारत पर हिंदी कविताएँ | Poem on Clean India | Swachh Bharat abhiyan

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ये हैं स्वच्छ भारत पर कुछ बेहतरीन हिंदी कविताएँ, बच्चों के लिए हिंदी कविता on Swachh Bharat abhiyan and cleanliness enviourment Poem Hindi | स्वच्छ भारत पर कविताएँ।
कविताओं में सफाई, पेड़ बचाओ, पानी बचाओ, कपड़ा साफ करो, गंदा पानी शामिल है।
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स्वास्थ्य सुरक्षा 

होते मनुज शरीर में , नाना रोग विकार
स्वास्थ्य सुरक्षा  के लिए, रहें सदा तैयार
रहें सदा तैयार , स्वच्छता बहुत ज़रूरी
तन होवे बलवान , करें हम कसरत पूरी
कह भगवत कविराय , आलसी, स्वास्थ्य डुबाते
जो रखते हैं ध्यान , कभी वे रूग्ण न होते 
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poems on cleanliness of environment in hindi


करें सफाई 

करें सफाई हम स्वयं, दें सबको संदेश
हम सब सीखें स्वच्छता , गर्व करे तब देश
गर्व करे तब देश , खुले में शौच न जायें
शासन का अनुदान, आप संडास बनाएँ
कह भगवत कविराय , ध्यान से सुनना भाई
गाँव शहर हों स्वच्छ , अगर हम करें सफाई 
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साफ हो नाली- नरदे 

नाली- नरदे , बावड़ी, गली सड़क हो साफ
रोगों की संभावना , हो जाएगी हाफ
हो जाएगी हाफ , छानकर पानी पीना
रोग न आएं पास , शान से जीवन जीना
कह भगवत कविराय , गंदगी रुग्ण न करदे
गली सड़क घर द्वार , साफ हो नाली नरदे 

कपड़े होवें साफ 

कपड़े मैले हों अगर, रोग न करता माफ
फटे-पुराने हों भले, कपड़े होवें साफ
कपड़े होवें साफ , लगावें साबुन अच्छा
तन-मन से हो स्वस्थ, युवा बूढ़ा या बच्चा
कह भगवत कविराय , मैले बीमारी जकड़े
कर लें इस्त्री प्रेस , जचें तब तन पर करड़े 

पानी हैं अनमोल 

पानी  का संचय करो,पानी है अनमोल
पशु - पक्षी , मानव करें , पानी में किल्लोल
पानी में किल्लोल , इसी पानी से जीवन
है कृषि का आधार , हरे रहते वन-उपवन
कह भगवत कविराय , करो मत जल का अपव्यय
बूँद -बूँद अनमोल करो पानी का संचय 

पानी पीना छानकर 

पानी पीना छानकर , अथवा पियें उबाल
दूषित जल पीना नहीं , बन जायेगा काल
बन जायेगा काल , अगर पानी हो दूषित
दस्त , पीलिया रोग, बढ़ाता वारी प्रदूषित
कह भगवत कविराय , नहीं करना मनमानी
मच्छर मक्खी बढ़ें , रहे यदि दूषित पानी 


पानी 

पानी पर आती दिखी होकर मौत सवार
प्यासे ने दम तोड़कर, सिद्ध किया यह सार
सिद्ध किया यह सार व्यर्थ पानी मत खोना
पानी के बिन पड़े, अन्यथा हमको रोना
कह भगवत कविराय , छोड़ दो अब नादानी
पानी है अनमोल बचा कर रखना पानी 

न पीना दूषित पानी 

दूषित पानी शत्रु सम , कर देता बीमार
फैले हैजा पीलिया, खुजली चर्म विकार
खुजली चर्म विकार , इसी से आँखें आती
टी.वी , मोतीझिरा , पटारे भी हो जातीं
कह भगवत कविराय ,  नहीं करना नादानी
लेना छान , उबाल , न पीना दूषित पानी 


गंदा पानी 

गंदा पानी मत पियो, जो भी पीते लोग
घेर लिया करते उन्हें, भाँति-भाँति के रोग
भाँति-भाँति के रोग , रखें हम साफ-सफाई
पानी पियें उबाल , या की लें दाल दवाई
कह भगवत कविराय , समझ लें दादी नानी
रोगों की जड़ यही, गंदगी , गंदा पानी 

कीचड़ या मल-मूत्र 

नदियों में डालो नहीं कीचड़ या मलमूत्र
समझो उत्तम स्वाथ्य के, मंगलकारी सूत्र
मंगलकारी सूत्र, हमारी पावन नदियाँ
झेल रही है आज, पप्रदूषण की त्रासदियाँ
कह भगवत कविराय ,  न थी पिछली सदियों में
जितनी दिखने लगी, गंदगी अब नदियों में 

हुई गायब हरियाली 

नर्तन बूढ़ों का नहीं , खिलें न सुख के फूल
फाँसी पर जबसे गए , सारे जंगल झूल
सारे जंगल झूल, हुई गायब हरयाली
उपवन के हो गए शत्रु , उसके ही माली
कह भगवत कविराय , हुआ घातक परिवर्तन
सूखा है सर्वत्र नहीं, बूँदों का नर्तन 

रखें प्रदूषण मुक्त 

रखें प्रदूषण मुक्त हम, नदी कुँये , तालाब
माँगेंगी हर चीज़ का , हमसे प्रकृति हिसाब
हमसे प्रकृति हिसाब , स्वच्छ हों नगर हमारे
रहें साफ घर द्वार , सड़क , आँगन , औसारे
कह भगवत कविराय , वृक्ष धरती के भूषण
जंगल अपने मित्र , दूर ये रखें प्रदूषण 

त्रस्त दिखते पशु पक्षी 

लाने पुनः वसंत हम, उपक्रम करें विशेष
गुमें न मधुमास के, बचे-खुचे अवशेष
बचे-खुचे अवशेष , त्रस्त दीखते पशु-पक्षी
पशुओं को खा रहे, मारकर आभिष भक्षी
कह भगवत कविराय , प्रकृति को चलें मनाने
वृक्षारोपण करें, धरा पर वैभव लाने 

वन्य पशुओं की रक्षा 

रक्षा करनी चाहिए , जीव जन्तु की खास
जंगल काटे , कर दिया , हमने प्रकृति विनाश
हमने प्रकृति विनाश , उजाड़े जंगल सारे
अभ्यारण्यों बिना, बचें क्या पशु बेचारे
कह भगवत कविराय , वनों की करें सुरक्षा
जंगल ही कर सकें वन्य पशुओं की रक्षा 

वृक्षों के कस लो कवच 


वृक्षों के कस लो कवच , हरियाली की ढाल
शास्त्र व्याधियों के लिए, खड़ा प्रदूषण काल
खड़ा प्रदूषण काल , सजग हो जाओ भाई
वृक्षारोपण सहित , करो सर्वत्र सफाई
कह भगवत कविराय , प्रश्न ये हैं यक्षों के
इनके उत्तर यही , सघन वन हों वृक्षों के 

प्रदुषण 

सूखा और अकाल से ,प्रकति जताये कोप
पर्यावरण बिगाड़ कर ,दिया प्रदूषण थोप
दिया प्रदूषण थोप,प्रकृति  से की मनमानी
पड़ने लगे अकाल,नदी का  सूखा पानी
कह भगवत कविराय,धरा का तन है रुखा
सब जंगल कट गये ,तभी तो पड़ता सूखा 

धुआँ धूल के गिद्ध 

मँडराते है व्योम पर ,धुँआ धूल के गिद्ध
  पशु -पक्षी मानव सभी ,हुए प्रदूषण विद्ध
हुए प्रदूषण विद्ध,चिमनियाँ धुँआ उगलतीं
अब फैली है राख ,जहाँ थी दूब छिछकती
कह भगवत कविराय,भयावह दृश्य दिखाते
धूल धुँआ के गिद्ध ,चतुर्दिक है मँडराते 

कान  के पर्दे फाडे 

सन्नाटों  में खलबली ,बंद पवन की बीन
कीर -कोकिला के लिए ,गीत हमीं ने छीन
गीत  हमीं ने छीन,कण के पर्दे फाडे
बड़े -बड़े संयंत्र और ट्रक रोज दहाड़े
कह भगवत कविराय, शोर सड़को,हाटो में
ज्यों की छिड़ा हो युध्द ,दहाड़े -सन्नाटों में 


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